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शिकॉगो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स

।। रविभूषण।।(वरिष्ठ साहित्यकार)अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के पूर्व किसी भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष के नाम से अर्थशास्त्र को जोड़ कर नहीं देखा गया है. ‘रीगनॉमिक्स’ के बाद ‘मनमोहनॉमिक्स’ की बात की जाती रही है और अब रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के नाम पर ‘रघुनॉमिक्स’ की चरचा चल पड़ी है. क्या रोनाल्ड रीगन, […]

।। रविभूषण।।
(वरिष्ठ साहित्यकार)
अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के पूर्व किसी भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष के नाम से अर्थशास्त्र को जोड़ कर नहीं देखा गया है. ‘रीगनॉमिक्स’ के बाद ‘मनमोहनॉमिक्स’ की बात की जाती रही है और अब रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के नाम पर ‘रघुनॉमिक्स’ की चरचा चल पड़ी है. क्या रोनाल्ड रीगन, मनमोहन सिंह और रघुराम राजन का अर्थशास्त्रीय विचार-चिंतन एकदम भिन्न, नवीन और मौलिक है? ‘न्यूजवीक’ पत्रिका के प्रमुख आर्थिक संवाददाता रीच थॉमस ने 16 दिसंबर 1988 के ‘न्यूजवीक’ में ‘दि मैजिक ऑफ रीगनॉमिक्स’ शीर्षक से एक लेख लिखा था.

इसमें यह उल्लेख था कि अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन ने रीगन को ‘मजबूत मुद्रा और निम्न कर का महत्व’ का पाठ पढ़ाया. रीगन के अर्थशास्त्रीय सोच-विचार में मिल्टन फ्रीडमैन का बड़ा हाथ था. मिल्टन फ्रीडमैन (31 जुलाई 1912-16 नवंबर 2006) का बजट नीति के संबंध में एक अल्प-चर्चित सिद्धांत भी था, जिसे रीगन ने व्हाइट हाउस में पहले दिन से अमल में लाना आरंभ किया था. फ्रीडमैन के अनुसार बजट के संबंध में सर्वप्रमुख बात उसका आकार और घाटा न होकर उसके खर्च की दिशा और स्तर है. राष्ट्रपति बनने के बाद रीगन ने इस घाटा-समस्या को किनारे रखा.

फ्रीडमैन ने 1974 में शिकॉगो यूनिवर्सिटी के न्यासियों से यह कहा था कि संपूर्ण विश्व के अर्थशास्त्रियों के लिए शिकॉगो एक नगर और एक विश्वविद्यालय निर्दिष्ट न कर, एक ‘स्कूल’ निर्दिष्ट करता है. आर्थिक नीतियों के विचार-विमर्श में ‘शिकॉगो’ मुक्त बाजार की क्षमता के विश्वास को संसाधनों को सुव्यवस्थित करने के साधन-रूप में, आर्थिक मामलों में सरकारी हस्तक्षेप को कम करने और मुद्रास्फीति की वृद्धि के एक प्रमुख तत्व मुद्रा की मात्र पर बल देने में प्रमुख रहा है. आर्थिक विज्ञान पर विचार-विनिमय/परिचर्चा में ‘शिकॉगो’ एक प्रस्ताव के साथ खड़ा रहा. इसने अपने समय में मौजूद समस्याओं के आश्चर्यजनक रूप से विश्लेषण के एक उपकरण के रूप में आर्थिक सिद्धांत प्रस्तुत किये.

आज पूरी दुनिया में शिकॉगो प्रशिक्षित अर्थशास्त्री प्रमुख भूमिका में हैं. शिकॉगो विश्वविद्यालय जॉन डी रॉकफेलर की ‘मानस संतान’ था, रॉकफेलर इसे उच्चतम शिक्षा और शोध की महान संस्थाओं में से एक बनाने को कृतसंकल्प थे. वे अपने लक्ष्य में कामयाब हुए. 1892 से अब तक इस विश्वविद्यालय का विश्वप्रसिद्ध गौरवशाली इतिहास है. यहां अर्थशास्त्र विभाग के पहले ‘राजनीतिक अर्थव्यवस्था’ का विभाग था. आरंभ में जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुयायी जेम्स लारेंस लागलिन थे, जो निष्ठावान आर्थिक रूढ़िवादी थे. बीसवीं सदी के आरंभ में विभाग का नाम बदला.

द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व ‘शिकॉगो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ का कोई उल्लेख लिखित रूप में नहीं मिलता. शिकॉगो विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग को विकास-दृष्टि से चार युगों में देखा गया है. पहला इसका आरंभिक या आधार-युग है, जब 1892 से 1916 तक विभाग के चेयरमैन जेम्स लारेंस लागलिन थे. दूसरा युग जैकब वाइनर और फ्रैंक नाइट का है. वाइनर की नियुक्ति 1916 में हुई थी और लगभग तीस वर्ष वे यहां रहे. विभाग से उनकी विदाई 1946 में हुई. तीसरा युग मिल्टन फ्रीडमैन के नाम से ख्यात है, जिसे ‘शिकॉगो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ कहा जाता है. 1946 में फ्रीडमैन विभाग में आये और 1976 में सेवानिवृत्त हुए. इसके बाद के समय को, जो 1977 से अब तक का है, पश्चात फ्रीडमैन, युग या फ्रीडमैनोत्तर युग भी कहा जाता है.

जॉर्ज स्टिग्लर ने अपनी आत्मकथा ‘मेम्वॉयर्स ऑफ ऐन अनरेगुलेटेड इकोनॉमिस्ट’ (1998) में 1950 के पहले एक विशेष ‘शिकॉगो स्कूल’ का कहीं कोई संकेत नहीं माना है. पांच वर्ष बाद 1955 तक इस स्कूल की कोई बड़ी मान्यता नहीं थी. साठ के दशक में इसकी व्यापक चर्चा हुई. 1957 में एडवर्ड एच चैंबरलीन ने ‘शिकॉगो स्कूल’ पर लिखा- यह स्कूल ‘प्रतियोगी सिद्धांत’ में विश्वास रखता है. इसकी विशिष्ट पहचान उस उत्साह या जोश में है, जिससे इसने ‘एकाधिकारी प्रतियोगिता के सिद्धांत’ पर आक्रमण किया. चैंबरलीन ने इसी कारण ‘शिकॉगो स्कूल’ को ‘एकाधिकारी प्रतियोगिता’ के विरुद्ध कहा है. अब शिकॉगो स्कूल की अपनी समृद्ध परंपरा है. रघुराम राजन के रिजर्व बैंक के गवर्नर पद कार्यभार संभालने के तुरंत बाद ‘द हिंदू’ ने अपने संपादकीय ‘गवर्नर्स फस्र्ट डे’ (6 सितंबर 2013) में ‘शिकॉगो प्रशिक्षित अर्थशास्त्रियों’ की चर्चा की है कि वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि अविवेकी प्रत्याशा प्रतिकूल उत्पादक या गैर उत्पादक हो सकती है.

‘शिकॉगो स्कूल’ विश्व में अर्थशास्त्र के अन्य संस्थानों से भिन्न रहा है. हार्वर्ड में अर्थशास्त्र, गणित के समकक्ष पर बौद्धिक अनुशासन था, जिससे किसी समस्या का समाधान नहीं होता था. इस स्कूल (शिकॉगो) के केंद्रीय सिद्धांत दो थे- नीति संबंधी और अर्थशास्त्र के अध्ययन की पद्धति. नीति-निर्धारण के मुख्य निर्माता मिल्टन फ्रीडमैन थे. उन्होंने इन नीतियों को कई क्षेत्रों में प्रभावित किया. मृतप्राय मौद्रिक अर्थशास्त्र के अध्ययन को फ्रीडमैन ने पुनर्जीवित किया. कीन्सीय स्कूल पर शक्तिशाली प्रहार किया, परिमाण-सिद्धांत का उपयोग किया और प्रमुख नये नीति-प्रस्तावों की खोज की. स्टिग्लर ने लिखा है कि अमेरिकी आर्थिक जीवन में फ्रीडमैन ने मुद्रा की मजबूत ऐतिहासिक भूमिका पर प्रयोगाश्रित कार्य किये. विश्व आर्थिक-परिदृश्य में ‘शिकॉगो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ के आगमन के बाद ही अर्थशास्त्र में 1969 से नोबेल पुरस्कार देना आरंभ होता है.

अन्य नोबेल पुरस्कारों- भौतिकी, रसायन-शास्त्र, चिकित्साशास्त्र, साहित्य और शांति पुरस्कारों के 68 वर्ष बाद. भारत सहित जिन देशों ने मुक्त व्यापार को अपने ‘आर्थिक विकास’ के केंद्र में रखा है, वहां ‘शिकॉगो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ की दृष्टि-नीति है. ‘लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’ से ‘शिकॉगो स्कूल’ को नहीं समझा जा सकता. शिकॉगो स्कूल ने वैश्विक ‘मॉडल’ बनाया और इसमें जितनी बड़ी भूमिका मिल्टन फ्रीडमैन की है, उतनी किसी की नहीं. शिकॉगो स्कूल ने लगभग तेरह नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री दिये. ‘अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन’ के लगभग एक दर्जन अध्यक्ष इस स्कूल से जुड़े रहे हैं, यह जानना जरूरी है कि भारत सहित दुनिया के कितने देश शिकॉगो स्कूल की नीतियों से प्रभावित-प्रेरित और संचालित हैं?

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