रांची: विलेज ग्रेन बैंक (ग्रामीण अन्न कोष) के लिए केंद्र की ओर से भेजे गये 24 हजार क्विंटल चावल का कोई पता नहीं चल रहा है. खुले बाजार में इसकी कीमत करीब 2.5 करोड़ रुपये होगी. इतने बड़े पैमाने पर अनाज कहां गये, इसकी जानकारी खाद्य निगम (एसएफसी) को भी नहीं है. चार दिन पहले खाद्य आपूर्ति विभाग की बैठक में इसकी चर्चा हुई, पर कोई कुछ नहीं बोला. गरीबों को अनाज उपलब्ध कराने के उद्देश्य से विलेज ग्रेन बैंक की बनाने थे. केंद्र प्रायोजित इस योजना के तहत राज्य भर में ग्रामीण सामुदायिक भवन या किसी अन्य स्थान पर कुल 583 ग्रेन बैंक का निर्माण कियाजाना था.
केंद्र सरकार ने 2011 में अनुदान के रूप में प्रति बैंक 40 क्विंटल चावल मुहैया कराया था. इस तरह कुल 24 हजार क्विंटल चावल उपलब्ध कराये थे. पर झारखंड में ग्रेन बैंक का निर्माण नहीं हो पाया. इस बीच केंद्र के दबाव के कारण विभिन्न जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) दुकान को ही ग्रेन बैंक घोषित कर दिया गया. केंद्र से मिले अनाज को इन्हीं पीडीसी दुकानों में भेज दिया गया. अब केंद्र से मिले ये चावल कहां गये, कोई पता नहीं चल पा रहा है.
क्या थी योजना
ग्रेन बैंक गरीबों को अनाज उधार देने व उनकी खाद्य सुरक्षा के लिए बनाने थे. अधिकतम 40 बीपीएल व अंत्योदय परिवार के लिए यहां 40 क्विंटल अनाज रखा जाना था. अकाल-सुखाड़ की स्थिति में गरीब इस बैंक से एक क्विंटल अनाज उधार ले सकते थे. सरकार द्वारा तय प्रक्रिया के तहत बाद में यह अनाज या इसकी कीमत लौटा सकते थे. वहीं अनाज तौलने के लिए माप-तौल, भंडारण, परिवहन व प्रशिक्षण सहित कार्यक्रम की मॉनिटरिंग के लिए प्रति बैंक 1800 रुपये का खर्च राज्य सरकार को वहन करना था. लेकिन सरकार ने यह कार्यक्रम रद्द कर दिया.