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गांव की सारी जमीन ग्राम सभा को दान

अपर्णा पल्लवीग्रामसभा को मजबूत करने और लोगों के भू-अधिकारों को संरक्षित करने के लिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के मेंढ़ालेखा के ग्रामीणों ने एक अनोखी मिसाल पेश की है. गांव के लोगों ने 3 सितंबर को सर्वसम्मति से अपनी खेती योग्य सारी जमीन ग्राम सभा को दान कर दी है. ऐसा उन्होंने महाराष्ट्र के एक […]

अपर्णा पल्लवी
ग्रामसभा को मजबूत करने और लोगों के भू-अधिकारों को संरक्षित करने के लिए महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के मेंढ़ालेखा के ग्रामीणों ने एक अनोखी मिसाल पेश की है. गांव के लोगों ने 3 सितंबर को सर्वसम्मति से अपनी खेती योग्य सारी जमीन ग्राम सभा को दान कर दी है. ऐसा उन्होंने महाराष्ट्र के एक भुला दिये गये कानून महाराष्ट्र ग्राम दान एक्ट, 1964 के तहत किया है. अब 52 परिवारों और 480 लोगों वाली मेंढालेखा की ग्राम सभा 200 हेक्टेयर जमीन की कानूनन मालिक हो गयी है.

एक बड़ा परिवार हो गया मेंढालेखा
3 सितंबर को आयोजित इस ग्राम सभा में जब यह अनूठा फैसला लिया गया उस वक्त धनोरा के तहसीलदार मलिक वीरानी वहां मौजूद थे. गांव वालों ने इस दौरान कहा कि अब पूरा गांव एक परिवार की तरह हो गया है और भूमि के निजी स्वामित्व के दुष्प्रभावों से मुक्त है, जिसके कारण किसानों और जमीन पर निर्भर समुदायों के बीच बेवजह विवाद होते थे. इससे पहले भी मेंढालेखा चर्चा में आ चुका है जब वह जंगल पर सामुदायिक अधिकार हासिल करने वाले देश के पहले दो गांवों में शामिल हुआ था. वहां के लोगों ने जंगल से बांस की कटाई का अधिकार हासिल किया है.

गोंडों में निजी स्वामित्व की जगह नहीं
मेंढालेखा के सामुदायिक प्रधान देवजी तोफा कहते हैं कि हमलोग गोंड आदिवासी समुदाय से संबंधित हैं. हमारी परंपरा में जमीन को कभी संपत्ति या निजी स्वामित्व वाली वस्तु के तौर पर नहीं देखा गया है. इसे हमेशा सामुदायिक संसाधन माना गया है. मगर संपत्ति के आधुनिक सिद्धांत जो जमीन को निजी मिल्कियत के तौर पर देखते हैं के कारण हमारे समुदाय का काफी नुकसान हुआ है. निजी स्वामित्व की इसी भावना के कारण हमारे बीच के लोग स्वार्थ और अकेलेपन का शिकार हो गये हैं. ग्राम दान के इस फैसले के कारण अब पूरा मेंढालेखा गांव एक बड़े परिवार में बदल गया है. पहले ग्राम सभा जंगल, जल और स्टोन चिप्स के खदान जैसे सामुदायिक संसाधनों के बारे में फैसले लेती थी. अब कृषि भूमि भी सामुदायिक संपत्ति बन गयी है और इसके बारे में भी हमलोग मिल-बैठकर फैसले ले सकते हैं.

बिल्डरों पर लगेगी लगाम
नागपुरवासी सर्वोदयी कार्यकर्ता पराग चोलकर कहते हैं कि मेंढालेखा के ग्राम वासियों द्वारा उठाये गये मौजूदा कदम का सबसे बड़ा लाभ बाहरी लोगों के गांव में अनियंत्रित प्रवेश को रोकने के रूप में होगा. हाल के दिनों में विदर्भ और आसपास के इलाकों में कृषि भूमि का जबरदस्त संकट उपस्थित हो गया है. जबकि निजी बिल्डर गांववालों की जमीन औने-पौने दर में खरीद कर यूं ही छोड़ दे रहे हैं. अब ऐसे बिल्डरों को गांव में घुसने के लिए ग्राम सभा की इजाजत लेनी पड़ेगी.

ग्रामसभा भी होगी मजबूत
चोलकर कहते हैं कि इस प्रक्रिया से ग्राम सभाएं मजबूत होंगी और ग्राम पंचायतों की मौजूदा व्यवस्था जो पावर पॉलिटिक्स में फंस गयी है उस पर भी लगाम लगेगा. हालांकि मेंढालेखा में पहले से ऐसा चल रहा है, यहां ग्राम सभा पर ग्राम पंचायत के चयनित प्रधानों की धौंस नहीं चलती. मगर इससे इसकी ताकत और मजबूत होगी और गांव के लोगों की ताकत बढ़ेगी.

लंबी प्रक्रिया का नतीजाएक स्थानीय एनजीओ वृक्षमित्र संस्था के कार्यकर्ता मोहन हीराबाइ हीरालाल जो मेंढालेखा के ग्राम सभा के क्रिया कलापों पर लंबे समय से नजर रखते आ रहे हैं, कहते हैं, गांव के लोगों ने जो यह फैसला लिया है यह लंबी प्रक्रिया का नतीजा है. लोगों ने यह महसूस किया है कि जमीन उत्पादन का आधारभूत साधन है और निजी स्वामित्व के बदले सामुदायिक स्वामित्व लोगों की खुशहाली के लिए बेहतर साबित हो सकता है.

हालांकि आगे भी अधिकांश जमीन उनके पिछले स्वामियों द्वारा ही जोते जायेंगे, मगर इसके बारे में तमाम फैसले ग्राम सभा में लिये जायेंगे.

क्या है महाराष्ट्र का ग्राम दान कानून
यह कानून 1964 में अस्तित्व में आया. इसके पीछे बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन का प्रभाव बताया जाता है. उस आंदोलन के जरिये बड़े किसानों को अपनी जमीन छोटे किसानों को दान देने के लिए प्रेरित किया जाता था. मगर समय के साथ यह कानून अपनी प्रासंगिकता खो बैठा.

सर्वोदय कार्यकर्ता पराग चोलकर जिन्होंने देश में भू-दान आंदोलन का इतिहास लिखा है, कहते हैं, इस कानून के प्रावधानों के तहत बड़े जमीन मालिक किसानों को अपनी 75 फीसदी जमीन ग्राम सभा को दान करनी पड़ती थी. मेंढालेखा के किसानों ने एक कदम आगे बढ़कर सौ फीसदी जमीन ग्रामसभा को दान कर दी है.

इस कानून के तहत ग्राम दान के बाद ग्राम सभा को पांच फीसदी जमीन भूमिहीनों को बांटना होता है और शेष जमीन पर उसके पुराने मालिक खेती करते रहते हैं. मगर अब गांव की जमीन किसी बाहरी व्यक्ति को बेची नहीं जा सकेगी. अगर गांव के लोग आपस में जमीन का लेन-देन करना चाहें तो वे ग्राम सभा की इजाजत से ऐसा कर सकेंगे.

पूरे गांव के जमीन के कागजातों की साज-संभाल भी अब ग्राम सभा ही करेगी. इस कानून के तहत ग्राम दान तभी वैध माना जायेगा जब सभी जमीन मालिक और 75 फीसदी भूमिहीन इस फैसले से सहमत हों. ग्राम दान की घोषणा के बाद जिला प्रशासन इस संबंध में गांव के लोगों से आपत्तियां आमंत्रित करेगा, इसके बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाकर इस फैसले को अंतिम रूप दिया जायेगा.

मेंढालेखा में यह तमाम प्रक्रियाएं पूरी कर ली गयी हैं और ग्राम सभा की बैठक की कार्रवाई जिला प्रशासन और मंडल आयुक्त के पास भेज दी गयी है और अगले तीन महीनों में इस फैसले का गजट प्रकाशित हो जायेगा.

(अनुवाद -पुष्यमित्र, आलेख डाउन टू अर्थ से साभार)

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