नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) उत्तीर्ण करने के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की अर्हता निर्धारित करने की नीति को सही ठहराया है. न्यायालय ने कहा कि यह ‘मनमानी और गैरकानूनी’ नहीं है.
न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि अदालतें शिक्षा से संबंधित मामलों में उस समय तक हस्तक्षेप करेंगी जब तब इनमें विधायी प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो. न्यायालय ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अर्हता का आधार निर्धारित कर सकता है.
आयोग ने मार्च, 2012 में नेट परीक्षा के लिये आवेदन आमंत्रित किये थे और इसकी अधिसूचना में सामान्य वर्ग के लिये प्रथम, द्वितीय और तृतीय प्रश्न पत्र के लिये न्यूनतम 40 फीसदी, 40 फीसदी और 50 फीसदी अंक निर्धारित किये थे जबकि अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और जनजातियों के प्रत्याशियों को क्रमश: पांच और 10 फीसदी की छूट दी गयी थी. इस परीक्षा के बाद आयोग ने सभी तीनों विषयों में एक उपबंध जोड़कर सामान्य वर्ग के प्रत्याशियों के लिये कुछ अंकों को 65 फीसदी और अन्य पिछड़े वर्ग के लिये इसे 60 फीसदी तथा अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिये 55 फीसदी कर दिया था.