कोलकाता: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने समाज से गायब होते नैतिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए लोगों से भलाई, सहिष्णुता और दया के सिद्धांतों को बनाए रखने की अपील की.चैतन्य महाप्रभु संग्रहालय की आधारशिला रखने के बाद मुखर्जी ने कहा, ‘‘अगर समाज को साफ रखना है तो यह वर्तमान पतित परंपराओं को जारी रहने नहीं दिया […]
कोलकाता: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने समाज से गायब होते नैतिक मूल्यों की सुरक्षा के लिए लोगों से भलाई, सहिष्णुता और दया के सिद्धांतों को बनाए रखने की अपील की.चैतन्य महाप्रभु संग्रहालय की आधारशिला रखने के बाद मुखर्जी ने कहा, ‘‘अगर समाज को साफ रखना है तो यह वर्तमान पतित परंपराओं को जारी रहने नहीं दिया जा सकता. इसे बदलने के लिए बल लगाने की आवश्यकता है, ठीक उसी तरह जैसा कि चैतन्य महाप्रभु ने किया था.’’ संत के जीवन के बारे में बोलते हुए मुखर्जी ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु, ईसा मसीह और भगवान बुद्ध ऐसे दूरदर्शी सुधारक थे, जिन्होंने समाज को सभी बुराईयों से मुक्त कराने की कोशिश की.
उन्होंने कहा, ‘‘श्री चैतन्य सिर्फ एक समाज सुधारक नहीं थे, बल्कि वे एक कं्रातिकारी भी थे, जो प्रचलित पतित सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ गए.’’ उन्होंने कहा कि 525 साल पहले के संत ने बंगाल में प्रोटेस्टेंट आंदोलन का नेतृत्व करके भारतीय आध्यात्मिक पुर्नजागरण की पहली लहर की अगुवाई की. उन्होंने वैश्विक मानवता के सिद्धांतों का उपदेश दिया.राष्ट्रपति ने गरीबों को शिक्षा और चिकित्सीय राहत, बूढ़ों-बीमारों और निष्कासित लोगों को देखभाल उपलब्ध कराने के गौड़िया मठ के प्रयासों की तारीफ की. इसके अलावा उन्होंने प्राकृतिक आपदा जैसी चुनौतिपूर्ण स्थितियों में उनकी सेवाओं की तारीफ की.
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि चैतन्य ने देशभर की यात्रा की. वे आदिवासियों से लेकर पददलित हर वर्ग के लोगों से मिले, जो उनके सुधार आंदोलन में उनके मुख्य अनुयायी बन गए.बंदोपाध्याय ने कहा कि यह ऐतिहासिक है कि इस साल स्वामी विवेकानंद की जन्म अर्धशती के साथ-साथ चैतन्य महाप्रभु की 525वीं जयंती भी है. उन्होंने कहा कि इन दोनों महान व्यक्तियों ने अपने काम की शुरुआत ‘कोलकाता के बागबाजार के इस इलाके से की. ’ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम के नारायणन भी इस अवसर पर मौजूद थे.