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राष्ट्रधर्म निभायें राजनेता

आज देश, राज्य, समाज और परिवार जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी विचलित हैं. सत्ता तक पहुंचने के लिए जिन करामाती उपायों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह छिप भी नहीं रहा है. मीडिया की रिपोर्टे देश और समाज की स्थिति हर रोज बयान कर रही हैं. मन क्षोभ से भरा है. राजनीतिक पार्टियां […]

आज देश, राज्य, समाज और परिवार जी-तोड़ मेहनत करने के बाद भी विचलित हैं. सत्ता तक पहुंचने के लिए जिन करामाती उपायों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह छिप भी नहीं रहा है. मीडिया की रिपोर्टे देश और समाज की स्थिति हर रोज बयान कर रही हैं. मन क्षोभ से भरा है. राजनीतिक पार्टियां अपनी कमजोरी छिपाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को भी शिथिल करने के प्रयास में हैं. देश की जनता महंगाई से कराह रही है, वहीं इन राजनीतिक दलों के खातों में करोड़ों जमा हैं.

अपने सियासी कारनामों और गुनाहों के कारण सजायाफ्ता और दागी प्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने की अनुमति क्यों मिले? बाहुबली के बजाय शिक्षाविदों व बुद्धिजीवियों को अवसर क्यों नहीं मिल पाता है? सत्ता के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली को ठेस पहुंचाने वाले दोषी प्रतिनिधि सदन की शोभा क्यों बढ़ायें? चुनाव लड़ने को लेकर किये गये खर्च, पार्टी फंड और चंदे के नाम पर और टिकटों के लेन-देन में किये गये खर्च को सार्वजनिक करने में आपत्ति क्यों है?

राजनीतिक दलों को सूचनाएं सार्वजनिक करने में आपत्ति क्यों है? राजनीतिक दलों को पारदर्शिता कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए आरटीआइ अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव पेश करने की नौबत क्यों आयी? इन सबके बीच क्या कोयला घोटाले, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले जैसे मामलों की जांच कर रही एजेंसी को निस्संकोच बयान देकर प्रधानमंत्री दोषियों को सबक और देश को जवाब देंगे? राजनीतिक पार्टियां अपने विचारों व कर्मो का बचाव कर, जनता को यदि मुश्किल में डालने का काम करेंगी, तो देश का आर्थिक ढांचा बिगड़ना तय है. हमारे नेताओं को इससे बचने की जरूरत है.

अमितेश आनंद, हरमू, रांची

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