नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में आज एक गैर सरकारी संगठन ने दावा किया कि कोयला खदानों के आबंटन की समूची प्रक्रिया ‘गैर पारदर्शी, अनुचित और दागदार’ थी जिससे कुछ निजी कंपनियों को लाखों करोड़ रुपए का लाभ हुआ.
संगठन ने न्यायालय से ऐसे सारे आबंटन रद्द करने का अनुरोध किया. न्यायमूर्ति आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष गैर सरकारी संगठन ‘कामन काज’ के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि बगैर किसी प्रतिस्पर्धात्मक बोली की प्रक्रिया के कोयला खदानों का आबंटन न्यासी के सिद्धांत और संविधान के अनुच्छेद 14 के प्रावधान के खिलाफ है.उन्होंने निजी कंपनियों के कोयला खदानों के सारे आबंटन रद्द करने का अनुरोध करते हुये कहा कि ‘समूची प्रक्रिया गैर-पारदर्शी, अनुचित और दागी था जिसमें सभी नियमों और प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया गया.
प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘सीबीआई की प्राथमिकियों के अनुसार भी कोयला खदानों के आबंटन के दौरान भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत अपराध हुआ. मनमाने तरीके से कोयला खदानों के आबंटन से कुछ कंपनियों को लाखों करोड़ रुपए का लाभ हुआ जबकि राजस्व को इतनी ही रकम का नुकसान हुआ.’’ न्यायालय इस समय कामन काज और वकील मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है.
भूषण ने नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुये आरोप लगाया कि सत्ता के नजदीकी कुछ पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिये भ्रष्ट तरीके अपनाये गये.
प्रशांत भूषण ने अपनी लिखित दलीलों में कहा कि प्रतिस्पर्धात्मक बोली की प्रक्रिया अपनाने के कोयला सचिव के स्पष्ट रुख पर कार्यवाही करने की बजाये सरकार ने इसे लागू करने में फरवरी, 2012 तक आठ साल का विलंब किया.
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत सीबीआई ने ने 15 प्राथमिकी दर्ज की हैं. उन्होंने कहा कि निजी कंपनियों को कोयला खदान आबंटित करना ही गैरकानूनी और असंवैधानिक था.उन्होंने कहा कि 1993 से पहले राज्य सरकारों को कोयला खदानों की मंजूरी के लिये आवेदन मिलते थे