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जी-20 की बैठक और भारत की चिंता

जी-20 में शामिल देशों में दुनिया की करीब 66 फीसदी आबादी रहती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था का 90 फीसदी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों का है. जाहिर है, जी-20 देशों की तरफ से सर्वसम्मति से लिया गया कोई भी फैसला विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित करता है. लेकिन, […]

जी-20 में शामिल देशों में दुनिया की करीब 66 फीसदी आबादी रहती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था का 90 फीसदी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 75 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों का है. जाहिर है, जी-20 देशों की तरफ से सर्वसम्मति से लिया गया कोई भी फैसला विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित करता है. लेकिन, आर्थिक मोरचे पर प्रतियोगी देशों के लिए साङो हितों की तलाश कर पाना मुश्किल काम रहा है.

जी-20 में शामिल देशों के साथ भी कुछ ऐसा ही है. उसमें अमेरिका, जर्मनी, इटली, कनाडा और जापान सरीखे विकसित देश शामिल हैं, तो भारत, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और रूस सरीखे उभार ले रहे ‘ब्रिक्स’ देश भी. ब्रिक्स कहलाने वाले देश (रूस को छोडकर) अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार, डॉलर के मुकाबले राष्ट्रीय मुद्रा के अवमूल्यन और पूंजी के पलायन की चिंता के साथ बैठक में पहुंचे हैं. उनका मानना है कि विकसित देशों, खासकर अमेरिका द्वारा मंदी का मुकाबल करने के लिए शुरू किये गये प्रोत्साहन योजनाओं (स्टुमलस पैकेज) को वापस करने से उनकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है.

उधर, अमेरिका, ब्रिटेन और रूस की फौरी चिंता सीरिया संकट का जल्द से जल्द हल तलाशने को लेकर है, ताकि विश्व स्तर पर कच्चे तेल की अबाध आपूर्ति बनी रहे. रूस, चीन और भारत सहित अन्य विकासशील देश सीरिया संकट का राजनीतिक समाधान चाहते हैं, अमेरिका और फ्रांस की तरह सैन्य समाधान नहीं. रूस की सीरिया में दिलचस्पी इसलिए भी है, क्योंकि सीरिया का मौजूदा शासन उसके हथियारों का सबसे बड़ा खरीददार है.

सेंट पीटर्सबर्ट में भारत की प्रमुख चिंता अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने वाले कदमों को लेकर विकसित देशों को सहमत करने की है. इस चिंता के मद्देनजर ‘ब्रिक्स’ देशों के बीच 100 अरब डॉलर के एक साझा कोष बनाने की बात भी उठी है, हालांकि इसका स्पष्ट खाका तैयार नहीं हुआ है. अगर बैठक में इसको लेकर सहमति बनती है, तो यह ‘ब्रिक्स’ के देशों के लिए बड़ी सफलता होगी. बहरहाल, जी-20 की बैठक की सफलता इस बात से मापी जायेगी कि उसमें सीरिया-संकट के समाधान के लिए सैन्य-हस्तक्षेप के विकल्प पर मुहर लगी या राजनीतिक विकल्प पर.

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