नयी दिल्ली: निवर्तमान मुख्य सूचना आयुक्त सत्येन्द्र मिश्र ने बुधवार को कहा कि लापता कोयला फाइल के विवाद को रोका जा सकता था अगर सरकार ने रिकॉर्ड के कम्प्यूटरीकरण को कड़ाई से लागू किया होता. आरटीआई अधिनियम के तहत रिकार्ड का कम्प्यूटरीकरण आवश्यक है.
पीटीआई को दिए विशेष साक्षात्कार में मिश्र ने कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा चार के तहत रिकार्ड का सूचीकरण और कम्प्यूटरीकरण आवश्यक है और अगर इसे उपयुक्त तरीके से लागू किया जाता है तो इस तरह की स्थिति को टाला जा सकता है.
उन्होंने आरटीआई अधिनियम के समक्ष चुनौतियों पर सवाल का जवाब देते हुए कहा, ‘‘आपने लापता कोयला फाइलों के बारे में पढ़ा होगा जिसकी आजकल काफी चर्चा है.. अगर फाइलों को कम्प्यूटर में सुरक्षित रखा जाता तो इसके गायब होने की संभावना नहीं रहती. फाइलों की प्रतियों को एक या दो कम्प्यूटर के हार्ड डिस्क में रखा जा सकता है जिससे यह गायब नहीं होती.’’मिश्र कोयला मंत्रालय के कुछ गायब फाइलों का जिक्र कर रहे थे. कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित अनियमिमताओं की जांच के सिलसिले में सीबीआई ने इन फाइलों की मांग की थी जो ‘‘लापता’’ पाए गए.
उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2005 में आरटीआई अधिनियम की धारा चार :एक: में कहा गया कि सरकार को रिकॉर्ड का कम्प्यूटरीकरण करना होगा. इसलिए अगर हमने 2005 से पहले नहीं किया तो 2005 के बाद हमें ऐसा करने से क्या रोक रहा है.’’मिश्र ने कहा कि आरटीआई अधिनियम की धारा चार को संतोषजनक तरीके से लागू नहीं करना ही आरटीआई अधिनियम को लागू करने में एकमात्र और सबसे बड़ी बाधा है.
पूर्व नौकरशाह 64 वर्षीय मिश्र पांच वर्षों तक सीआईसी के पद पर रहने के बाद आज सेवानिवृत्त हो गए जिस दौरान छह राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने का आयोग का ऐतिहासिक निर्णय हुआ था.मिश्र ने निर्णय के बारे में पूछने पर कहा कि आरटीआई अधिनियम के तहत जो सूचना रिकार्ड में है उसे सूचना मांगने वाले को दिया जा सकता है. अगर सूचना रिकार्ड में नहीं है तो इसे नहीं दिया जा सकता.
उन्होंने कहा कि इसलिए अगर किसी राजनीतिक दल को 20 हजार रुपये से कम चंदा देने वालों का रिकार्ड नहीं है तो इस बारे में जानकारी नहीं दी जा सकती.यह पूछने पर कि क्या राजनीतिक दलों द्वारा मामले को अदालत में चुनौती देने के बजाए सीधे संसद ले जाना ठीक था तो मिश्र ने कहा कि यह उनका निर्णय था और उनको संशोधन करने का अधिकार है.
उन्होंने कहा, कुछ लोग आदेश स्वीकार नहीं करते. जब तक उच्चतम न्यायालय आदेश पारित नहीं करता तो निचली अदालत या न्यायाधिकरण का कोई भी आदेश लोग स्वीकार कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं.