कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से मसजिद के इमामों और मोअज्जिनों (अजान देने वालों) को दिये जाने वाले मासिक भत्ते को असंवैधानिक और जनहित के खिलाफ करार दिया है. अदालत ने तत्काल इसे बंद करने का निर्देश दिया है. न्यायमूर्ति प्रणव कुमार चट्टोपाध्याय और न्यायमूर्ति एमपी श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सोमवार को यह आदेश जारी किया. अदालत ने कहा कि यह भत्ता संविधान के अनुच्छेद 14 और 15.1 के खिलाफ है जो कहता है कि राज्य धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अप्रैल, 2012 में हर इमाम को 2500 रुपये देने की घोषणा की थी. बाद में उन्होंने यह भी कहा था कि मुअज्जिनों को भी 15-15 सौ रुपये मिलेंगे.
भाजपा नेता की याचिका पर सुनवाई
प्रदेश भाजपा महासचिव असीम सरकार ने सरकार के इस फैसले को चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और यह भत्ता धार्मिक आधार पर समानता सुनिश्चित करने के प्रावधानों के खिलाफ है. असीम सरकार के वकील कौशिक चंद्र ने कहा कि यह जनहित में भी नहीं है क्योंकि इससे हर साल सरकारी खजाने पर 126 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा.
राज्य सरकार के वकील ने दावा किया कि विधानसभा ने इस व्यय पर सहमति दे दी है और सरकार कानून के दायरे में रहते हुए ही ऐसा कर रही है. लेकिन अदालत राज्य सरकार की दलीलों से संतुष्ट नहीं थी. अदालत का कहना था कि असंवैधानिक फैसले पर अदालत का हस्तक्षेप हो सकता है. राज्य सरकार की ओर से इस फैसले पर स्थगनादेश की मांग की गयी थी. अदालत ने उसे भी खारिज कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले को तुरंत लागू करने का आदेश दिया है.