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नेतृत्व दे सकते हैं लोक उपक्रम

।। पार्थ सारथी भट्टाचार्य ।। (पूर्व चेयरमैन, कोल इंडिया) भारत की विकास गाथा में अपने औचित्य को सुनिश्चित करने की दिशा में केंद्रीय लोक प्रतिष्ठानों की कार्यशैली में सुधार अब परम आवश्यक है. प्रबंधकीय स्वायतत्ता अति महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में भारत के लोक उपक्रमों को भारी घाटा उठाना […]

।। पार्थ सारथी भट्टाचार्य ।।

(पूर्व चेयरमैन, कोल इंडिया)

भारत की विकास गाथा में अपने औचित्य को सुनिश्चित करने की दिशा में केंद्रीय लोक प्रतिष्ठानों की कार्यशैली में सुधार अब परम आवश्यक है. प्रबंधकीय स्वायतत्ता अति महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.

अस्सी के दशक के उत्तरार्ध में भारत के लोक उपक्रमों को भारी घाटा उठाना पड़ा था. बावजूद इसके ये कंपनियां धीरेधीरे लाभाजर्क इकाई के रूप में पहचानी जाने लगी. साथ ही निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों की तरह आर्थिक तौर पर शक्तिशाली बनी. बहुत कम समय में ही इन कंपनियों की आय का एक बड़ा हिस्सा सरकारी कोष में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने लगा. आज राजकोष में राजस्व की व्यापक उपलब्धता में लोक उपक्रमों की महत्वपूर्ण सहभागिता है. आज स्थिति यह है कि लगभग पचास से ज्यादा प्रमुख केंद्रीय लोक उपक्रमों में से दोतीन कंपनियों को बाजार पूंजीकरण के संदर्भ में सूचीगत दस शीर्षस्थ (टॉप टेन) कंपनियों के समरूप गिना जा रहा है.

असंगठित क्षेत्र में रोजगार : नब्बे के दशक के दौरान केंद्रीय लोक उपक्रमों के इस चमत्कारिक विकास और प्रगति को अक्सर रोजगार विहीन (जॉब लेस) के आरोप से नवाजा जाता है. यह सही है कि लोक उपक्रमों में प्रत्यक्ष तौर पर कर्मियों की संख्या में कुछ कमी आयी, लेकिन दूसरी ओर असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा हुए. उत्पादन के लिए आउटसोर्सिग पर जोर दिया गया, जिससे समाज के निम्न तबके के लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिले. ऐसा कहा जा सकता है कि ये लोग संगठित केंद्रीय लोक प्रतिष्ठानों में असंगठित क्षेत्र के न्यूनतम वेतनभोगी कर्मचारी हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्हें प्राप्त न्यूनतम वेतन को अन्यायपूर्ण मानते हुए हाल ही में कोयला कंपनी प्रबंधन तथा कोल इंडिया में सक्रिय मजदूर संगठनों के प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर फैसला लिया और खनन गतिविधि में सक्रिय अकुशल ठेका मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि की गयी. इससे ठेका मजदूरों की दैनिक मजदूरी प्रतिदिन 180 रुपये से बढ़ कर प्रतिदिन 464 रुपये की गयी है. इस वृद्धि से सालाना करीब 900 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा.

सक्षम हैं लोक उपक्रम : यह निर्विवाद सत्य है कि भारत के केंद्रीय लोक क्षेत्रीय संस्थान समतुल्यता के साथ विकास की दिशा को प्रमाणिक नेतृत्व देने में सक्षम हैं. यहां एक गंभीर महाबहस की शुरुआत की जा सकती है कि क्या मौजूदा भारतीय परिस्थितियों में चीन की तरह राजकीय परिसंपत्ति पर्यवेक्षण एवं प्रबंधन आयोग (एसएएसएसी) का मॉडल भारत में अपनाया जा सकता है अथवा नहीं? ऐसे किसी कदम के श्रीगणोश की दिशा में केंद्र को चाहिए की चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर के लिए योग्य कर्मठ भारतीय नागरिकों के बीच गहन तलाश के बाद चयनित व्यक्ति को ही नियुक्त करे. अन्य निदेशकों की बहाली के लिए विधिवत एक बोर्ड का गठन हो. बोर्ड की एक विधिवत गठित कार्मिक समिति हो, जिसके प्रमुख चीफ मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) अथवा कोई प्रख्यात गैर आधिकारिक निदेशक हों.

सीएमडी के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह अन्य निदेशकों की नियुक्ति के संबंध में बेबाक रूप से वास्तविक एवं व्यावहारिक राय दे, ताकि इस प्रकार बहाल होने वाले निदेशकगण एक टीम के रूप में कार्य निष्पादित करने के प्रति निष्ठावान हों. विधिवत गठित बोर्ड को कार्य निष्पादन एवं संचालन के व्यावसायिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए. गैर अधिकारिक निदेशकों की नियुक्ति के लिए बोर्ड की सिफारिशों के आधार पर सुयोग्य व्यावसायिक व्यक्तियों में से चयन होना चाहिए. उपक्रमों की कार्यशैली, गतिविधियां तथा निदेशकों की नियुक्ति आदि की प्रक्रिया में सरकार की दखलंदाजी कड़ाई से सीमित होनी चाहिए तथा कार्यदक्षता अनुश्रवण की वार्षिक बैठक में ही सरकारी हस्तक्षेप की मामूली गुंजाइश होनी चाहिए. बिना किसी पक्षपात, भय अथवा हस्तक्षेप के हर स्तर पर निर्णय लेने की छूट की प्रक्रिया अपनाने से ही सुव्यवस्थित ढंग से प्रोत्साहन मिलेगा.

..तो लोक उपक्रम होंगे सर्वोत्तम : केंद्रीय लोक उपक्रमों के अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों के मामलों को नजरअंदाज करना होगा, जब तक कि यह शिकायत शपथपत्र रूप में प्रस्तुत की गयी हों. इसके अलावा लोक उपक्रमों के अधिकारियों के घोटालों के खिलाफ सरकार को खबरदार करनेवालों को प्रोत्साहित करना होगा, जबकि निजी स्वार्थ के लिए मनगढ़ंत आरोप लगानेवालों को दंडित करने का प्रावधान कड़ाई से लागू करना होगा. यदि ऐसे सुधारात्मक कदम उठाये जाते हैं तो निश्चित रूप से हमारे केंद्रीय लोक उपक्रम सर्वोत्तम श्रेणी की वैश्विक कंपनियों के लिए अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करने में सक्षम होंगे तथा देश समाज तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के द्रुत समतुल्य विकास की नयी राह सुनिश्चित करने में सफल सिद्ध होंगे. (समाप्त)

(फोर्ब्स से साभार/अनुवाद : डॉ रवींद्र कुमार सिंह)

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