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डॉलर व रुपैया के बीच गायब पैसा

।।दीपक कुमार मिश्र।।(प्रभात खबर, भागलपुर)डॉलर और रुपया अभी अखबारनवीसों से लेकर बड़े-बड़े स्तंभकारों, उद्योगपतियों, राजनेताओं का पसंदीदा विषय हो गया है. मुंबई की दलाल स्ट्रीट से लेकर बाढ़ में डूबे भागलपुर के सूदूर गांव लैलख- ममलखा तक डॉलर व रुपये की ही चर्चा है. पैसे को तो लोग भूल ही गये. डॉलर गंगा की तरह […]

।।दीपक कुमार मिश्र।।
(प्रभात खबर, भागलपुर)
डॉलर और रुपया अभी अखबारनवीसों से लेकर बड़े-बड़े स्तंभकारों, उद्योगपतियों, राजनेताओं का पसंदीदा विषय हो गया है. मुंबई की दलाल स्ट्रीट से लेकर बाढ़ में डूबे भागलपुर के सूदूर गांव लैलख- ममलखा तक डॉलर व रुपये की ही चर्चा है. पैसे को तो लोग भूल ही गये. डॉलर गंगा की तरह उफान मार रहा है, तो रुपया किसी सूखते हुए तालाब के पानी की तरह नीचे जा रहा है. नौजवान होती पीढ़ी को आना और पाई तो क्या, एक, दो, तीन और पांच, दस, बीस पैसे तक का भान नहीं होगा. हां, चवन्नी (25 पैसे), अठन्नी (50 पैसे) जरूर देखी होगी. धीरे-धीरे यही स्थिति रुपये की भी हो गयी है.

आज एक रुपये की औकात भी उसके साइज के समान हो गयी है. पहले दो पैसे का सिक्का चलता था, उसी दो पैसियल के साइज या औकात में आ गया है एक रुपये का सिक्का. एक जमाना था जब चार आने (चवन्नी) का महत्व था. चवन्नी पर गाना बन गया था- राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के. अब तो एक रुपया से कम में कुछ है ही नही. एक पैसा में दोना भर नाश्ता और चार पैसा किलो दूध अब दादी-नानी के कहानियों का हिस्सा हो गया है. उनके समय की ये बातें अब बनावटी लगती हैं, लेकिन हैं सोलह आना सच. छह पैसे का एक आना, 12 पैसे का दो आना, 19 पैसे का तीन आना और 25 पैसे का चार आना होता था. यह अंकगणित अब हमारे बच्चे नहीं जानते, लेकिन उन्हें यह मालूम है कि डॉलर का भाव कितना चढ़ा और रुपया कितना खिसका.

देश की सबसे बड़ी पंचायत में डॉलर की खूब चर्चा हो रही है. इतनी चर्चा तो उस प्याज और आटा-दाल के लिए नहीं हुई, जिससे गरीब-गुरबा का सीधा सरोकार है. डॉलर मजबूत हो रहा है और रुपया कमजोर, तो इस पर बहस होनी ही चाहिए. यह देश की अर्थव्यवस्था का सवाल है. लेकिन अब इस मार से पूंजीपति भी गरीब हो रहे हैं और माननीय नेताओं का भी धन कम हो रहा है. अब जब अपने पर बन आयी है, तो लगे हैं गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाने. जब प्याज 70 रुपये किलो पहुंचा, तो सब रस्मी बयान देकर चुप हो गये. अब, जब देश के आम लोगों से अधिक अपने खजाने की चिंता सताने लगी, तो मालूम होने लगा आटे-दाल का भाव. कितने नेताओं को पता है कि आटा और आलू क्या भाव है. सोना गिरवी रख कर अर्थव्यवस्था बचाने की बात हो रही है.

अगर सोना गिरवी रखा गया, तो देश के साख पर बट्टा लगेगा. तमाम तरह के उपायों पर चर्चा हो रही है. बेगानी शादी में अब्दुला दीवाना की तरह मेरा भी एक सुझाव है. सोना गिरवी रखने की जरूरत नहीं है. खास लोगों का काला धन निकालिए और रुपये को मजबूत कीजिए. रुपया मजबूत होगा, तो डॉलर अपनी औकात में आ जायेगा. डॉलर व रुपये के बीच की खाई पट जायेगी. उसके बाद आजादी के समय की तरह डॉलर व रुपया एक समान हो जायेगा.

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