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सूचना-संचार तकनीक से विकसित होगा देश

पिछले दशक में सूचना एवं संचार तकनीक ने भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. वस्तुत: इसने भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था (नॉलेज बेस्ड इकॉनोमी) को उभारा है. जैसे-जैसे आइसीटी का प्रसार बढ़ा है, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था और समाज पर इसका असर देखा गया है. दरअसल भारत जैसे देश में कई समस्याओं को हल […]

पिछले दशक में सूचना एवं संचार तकनीक ने भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है. वस्तुत: इसने भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था (नॉलेज बेस्ड इकॉनोमी) को उभारा है. जैसे-जैसे आइसीटी का प्रसार बढ़ा है, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था और समाज पर इसका असर देखा गया है. दरअसल भारत जैसे देश में कई समस्याओं को हल करने में आइसीटी का उपयोग हो सकता है. कुछ क्षेत्रों में इसका सफल प्रयोग भी हो रहा है. चुनावों में ऑनलाइन वोटिंग इसका उदाहरण है. 2010 में ट्रायल के तौर पर गुजरात राज्य चुनाव आयोग ने म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनावों में पहली बार इ वोट का प्रयोग किया था. यह संकेत है कि भारत आइसीटी के इस्तेमाल से बदलेगा. आधार जैसी योजना पूरे देश में लागू होने पर एक एकीकृत सिस्टम विकसित हो सकेगा.

एमजे जेवियर
(निदेशक, आइआइएम, रांची)

किसी भी क्षेत्र या राज्य का विकास एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई सारे तत्व काम करते हैं, जैसे- प्राकृतिक संसाधन, आधारभूत संरचनाएं (इंफ्रास्ट्रक्चर), स्वास्थ्य, शिक्षा, उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) और औद्योगिकीकरण. उदाहरण के लिए, पिछले 50 वर्षो में जीवाश्म ईंधन से संपन्न देश दूसरों के मुकाबले तेजी से आगे बढ़े हैं. इसी तरह विकसित देशों में उच्च गुणवत्ता वाली सड़क, रेल और दूरसंचार नेटवर्क का विकास हुआ है. कोई भी विकास तब तक संभव नहीं होगा, जब तक कि राज्य अपनी आबादी के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर ध्यान नहीं केंद्रित करते. ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में भारत की सफलता का मुख्य कारण विकास के लिए शुरू किये गये वो प्रारंभिक कदम हैं, जो प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा शिक्षा और विज्ञान-तकनीक के क्षेत्र में उठाये गये थे. दूसरी चीज नागरिकों में उद्यमिता का भाव है, जो विकास और तरक्की में महत्वपूर्ण है. मारवाड़ी, गुजराती, पारसी, चेट्टियार और दूसरी व्यापारिक समुदायों ने बिजनेस खड़ा करके देश के विकास में अपना योगदान किया है.

मानव इतिहास में देखें, तो भिन्न-भिन्न दौर में कई सारे तत्व विकास के कारक रहे हैं. प्रारंभिक सभ्यताएं नदियों-झीलों के किनारे फली-फूलीं. आज भी हम पाते हैं कि पुराने नगर नदियों के किनारे ही स्थित हैं. औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया के कारण मानव जनसंख्या का बसाव उन क्षेत्रों में होने लगा, जो कच्चे माल के स्रोतों के नजदीक थे. इससे ग्रामीण जनसंख्या नगरों और औद्योगिक संकुलों की ओर पलायन करने लगी. अब जब हम सूचना युग में हैं, मेरा अपना मानना है कि सूचना और संचार तकनीक (आइसीटी) विकास में अपनी भूमिका निभा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (यूनाइटेड नेशंस मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स) में निर्धनता मिटाना, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना और लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करना क्रम से पहले, दूसरे और तीसरे लक्ष्य में शामिल रहे हैं. जैसे-जैसे इन लक्ष्यों को हासिल करने का समय नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे इन पर फोकस करने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है. 2011 के जनगणना आंकड़ों के अनुसार, 72.2 प्रतिशत जनसंख्या छह लाख 38 हजार गांवों में, जबकि 27.8 प्रतिशत जनसंख्या 5100 शहरों और 380 से ऊपर नगरीय संकुलों में रहती है. भारत जैसे बड़े देश में संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी लक्ष्यों को पाने में आइसीटी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

मोबाइल फोन

उदाहरण के लिए, कामगार वर्गो (वर्किग क्लास) पर मोबाइल फोन के प्रभाव को देखें. मोबाइल फोन के विस्तार से मजदूर वर्ग, जैसे पत्थर तोड़ने वाले, बढ़ई, बिजली मिस्त्री और इस तरह के कई वर्गो के लोगों की आय में वृद्धि हुई है. इससे सप्लाइ और कुशल मानव श्रम के बीच बेहतर तालमेल बैठ पा रहा है. केरल के मछुआरे गहरे समुद्र में जाकर मछली पकड़ते हैं, पर किनारे पहुंचने से पहले ही वो मोल-भाव शुरू कर देते हैं. पांडिचेरी के मछुआरे समुद्र में जाने से पहले सेटेलाइट तसवीरों को देखते हैं, ताकि यह पता किया जा सके कि किन क्षेत्रों में अधिक मछली मिल सकती है.

मैं कई ऐसे गांवों को जानता हूं जहां गाड़ियां चलाने योग्य सड़कें नहीं हैं और न ही बिजली है, लेकिन वहां भी मोबाइल फोन देखे जा सकते हैं. कभी-कभी मोबाइल फोन चार्ज कराने के लिए लोग कई किमी तक पैदल चलते हैं. मोबाइल फोन से न केवल लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं, बल्कि बाजार से जुड़ी सूचनाएं उपलब्ध होने के कारण उनकी आमद बढ़ी है. उन्हें अपने उत्पाद की अच्छी कीमत मिल जाती है.

मोबाइल फोन ने शहरी और ग्रामीण महिलाओं दोनों को उनकी उद्यमिता के अनुरूप बेहतर आय दिलाने और कुल मिला कर आर्थिक आजादी दिला कर सशक्त किया है. संचार तकनीक में बेहतर सुधार से न केवल रोजगार मिलने में वृद्धि हुई है, बल्कि वे बच्चों और परिवार के दूसरे सदस्यों को मॉनिटर करने में भी इसका प्रभावी तरीके से उपयोग करने लगे हैं.

स्मार्ट फोन के आने से संभावनाओं का नया द्वारा खुला है. अब सरकारी, कॉरपोरेट और शैक्षणिक संस्थानों से आसानी से सूचनाएं प्राप्त की जा सकती है. इससे निर्धन लोगों को शिक्षित और सशक्त करने और उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में मदद मिल सकती है.

शिक्षा में आइसीटी की भूमिका

कई तरह की सूचना और संचार तकनीकों के आने और समाज में उनके बढ़ते चलन और व्यवहार में लाने से कई तरह के अवसरों की संख्या बढ़ी है और इससे शिक्षा को प्रोत्साहित करने में बड़ी मदद मिली है. कई निजी कोशिशों के अलावा, सरकार भी आइसीटी के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है, ताकि स्कूली और उच्च शिक्षा में ग्रॉस इनरॉलमेंट रेशियो (कुल नामांकन अनुपात-जीइआर) बढ़ायी जा सके. आकाश टैबलेट भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया ऐसा ही प्रयास है.

ई लर्निग की खासियत यह है कि इससे छात्र अपनी सुविधा के अनुसार पढ़ाई कर सकते हैं या सीख सकते हैं. कंटेंट को किसी की जरूरत के हिसाब से तैयार किया जा सकता है. उदाहरण के लिए, शहद जमा करने और उससे आय प्राप्त करने वाले जनजातीय समुदायों को पारंपरिक विज्ञान और गणित नहीं सिखायी जा सकती, पर शहद और मधुमक्खियों से जुड़े विषयों को फिर से डिजाइन जरूर किया जा सकता है. इस तरह के करिकुलम को ओपेन स्कूलिंग सिस्टम से हर तरह के आजीविका से जुड़े लोगों के लिए लागू किया जा सकता है. यह सब कुछ मोबाइल फोन या टैबलेट के जरिये शाम के समय कुछ घंटों के क्लास में की जा सकती है. यह करिकुलम झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और केरल में भी जहां लोग जंगलों से शहद इकट्ठा करने के पेशे में हैं, लागू की जा सकती है. यह उन्हें उनकी स्थानीय जनजातीय भाषाओं में सिखायी जा सकती है.

यदि कोई व्यक्ति शहद इकट्ठा करने में सर्टिफिकेट कोर्स पूरा करता है, तो उसे कम्युनिटी कॉलेज से डिग्री कोर्स पूरा करने में भी योग्य होना चाहिए. इसी तरह उसे पीएचडी भी करनी चाहिए. यदि शहद से जुड़े विषय पर हम सर्टिफिकेट कोर्स के लिए 10 हजार लोगों को प्रशिक्षित करते हैं, तब हम एक हजार लोगों को डिग्री कोर्स के लिए और फिर 10 लोगों को पीएचडी भी करवा सकते हैं. इस तरीके से हम आज के विश्वविद्यालयों से निकलने वाले छद्म पीएचडी धारकों के मुकाबले विश्व स्तरीय पीएचडी धारक निकल सकेंगे.

भविष्य की शिक्षा इस बात पर निर्भर करेगी कि आप इसमें कितना बदलाव ला पाते हैं. ओपेन ऑनलाइन कोर्सो (मैसिव ओपेन ऑनलाइन कोर्सेज) की उपलब्धता के कारण शिक्षा की गुणवत्ता तो बढ़ेगी ही, शिक्षा पर आने वाला खर्च भी घटेगा. इससे अब हजारों-हजार छात्रों तक बेहतरीन शिक्षकों की पहुंच बन सकेगी.

भारत जैसे बड़े देश को इस नये विकास का लाभ उठाना होगा. ओपेन ऑनलाइन कोर्सो के आने के बहुत पहले ही भारत सरकार ने नेशनल नॉलेज नेटवर्क (एनकेएन) का गठन किया है. एनकेएन के प्रयोग से हमने अधिकांश संस्थानों को उच्च शिक्षा से जोड़ा है. हमें बस ऑनलाइन कोसों के प्लेटफॉर्म को मजबूत करने की जरूरत है और देश भर के संस्थानों और विश्वविद्यालयों के छात्रों को बेहतरीन प्रोफेसर उपलब्ध कराया कराया जा सके.

स्मार्ट क्लासरूम तकनीक इस स्तर पर प्रभावी बन चुका है कि प्रत्येक क्लास को रिकॉर्ड और एनकेएन में स्टोर किया जा सकता है, ताकि आगे देश भर में छात्र इसका इस्तेमाल कर सकें. इस तरह के ओपेन कोर्स वेयर के लिए एमआइटी ने रास्ता दिखाया है. उन्होंने ऐसे रिकॉर्डेड कोर्सो को मंडारिन, फ्रेंच, जर्मन और जापानी भाषाओं में डब भी किया है. हम अच्छे शिक्षकों की रिकॉर्ड किये गये लेक्चर को क्षेत्रीय और जनजातीय भाषाओं में डब कर सकते हैं और उन लोगों को नि:शुल्क उपलब्ध करा सकते हैं, जो इसे सीखने में रुचि लेते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालयों को स्मार्ट क्लास रूम स्थापित करने होंगे. इस तरह के स्मार्ट क्लास रूम में निवेश करने के लिए सरकार की सहायता भी उपलब्ध है.

कॉमन सर्विस सेंटर

भारत सरकार की सूचना-तकनीक विभाग द्वारा देश भर में इंटरनेट सेवाओं से जुड़ीं आइसीटी सुविधा प्राप्त करने के लिए 10 हजार से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) का नेटवर्क तैयार किया जा रहा है. सीएससी के जरिये सरकारी और निजी एजेंसियों को ई गवर्नेस, एडुकेशन, हेल्थ, टेली मेडिसिन, एंटरटेनमेंट आदि क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता और कर्म खर्च में वीडियो, वॉयस और डाटा उपलब्ध कराये जा सकेंगे. तमिलनाडु में सीएससी तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ है. किसान क्षतिग्रस्त फसल के सैंपल को सीएससी के पास ले जाते हैं, जहां विश्वविद्यालय में वेबकैम के जरिये वैज्ञानिक इसका निरीक्षण करते हैं और फिर किसानों को फसलों को बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों के सही इस्तेमाल की सलाह दी जाती है. सूचना और संचार तकनीक के जरिये किसानों को दी जाने वाली सहायता को कृषक समुदाय ने बहुत सराहा है.

आइटीसी की ई चौपाल सेवा, किसानों को उपलब्ध कराने वाली ऐसी ही सेवा है. यह किसानों को हर तरह की सूचनाएं, उत्पाद और सेवाओं की जानकारी देता है, जिससे उनकी पैदावार बढ़ायी जा सके, उसका बाजार मूल्य मिल सके और खर्चो में भी कटौती की जा सके.टेली मेडिसिन भी उन लोगों को बड़े अवसर उपलब्ध कराता है, जिनकी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं है. अरविंद नेत्र अस्पताल भी दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों के लोगों को अपनी सेवाएं देने के लिए इस सेवा का इस्तेमाल कर रहा है. सीएससी में वेबकैम का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे डॉक्टर प्रभावित आंख की तसवीरों को देखते हैं और फिर सही इलाज की सलाह देते हैं. जिन मरीजों को सजर्री की जरूरत होती है, उन्हें नजदीक के हेल्थ सेंटर या नेत्र शिविर में जाने की सलाह दी जाती है.

पंजाब का उदाहरण देखिए. ‘फॉर्म बाजार डॉट काम’ के जरिये किसान अपने उत्पाद को ऑनलाइन बेच रहे हैं. यहां किसानों को अपने उत्पाद बेचने से पहले देश भर में उसके बेहतर मूल्य मिलने की जानकारी दी जाती है. इससे बीच के एजेंट या दलाल जो भरपूर मुनाफा कमाते थे, उनका पत्ता कट गया है और इससे किसानों का लाभ बढ़ गया है.महाराष्ट्र का वारणा विलेज प्रोजेक्ट सूचना और संचार तकनीक के इस्तेमाल का बेहतरीन उदाहरण है. महाराष्ट्र के कोल्हापुर और सांगली जिले के वारणा नगर के नजदीक 70 गांवों में सामाजिक-आर्थिक विकास बढ़ाने के लिए सूचना और संचार तकनीक के इस्तेमाल पर बल दिया गया है. इस प्रोजेक्ट के जरिये किसानों को कई तरह की सूचनाएं दी जाती हैं जैसे-प्रमुख फसलों की रोपनी और बोआई विधियों की जानकारी, गन्ना की खेती के तरीके, फसल कीट नियंत्रण, बाजार से जुड़ी सूचनाएं, दुग्ध और गन्ना के प्रोसेसिंग से जुड़ी सूचनाएं आदि. सहकारी संस्थाओं को हाइ स्पीड वाले वीसैट से जोड़ा जा रहा है, ताकि मौजूदा सहकारी संस्थाओं को इंटरनेट आदि मुहैया कराया जा सके.

सीएससी के जरिये नागरिकों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया करायी जाती है जैसे- खतियान या भूमि, फसलों आदि से जुड़े दस्तावेज), भूमि रिकॉर्ड, नक्शा, आवेदनों का ऑनलाइन पंजीकरण, आय प्रमाण पत्र, आवासीय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, भूस्वामी के भू अधिकारों और ऋण से जुड़े पासबुक और ऋण भार से जुड़े प्रमाण पत्र. वे पेंशन, कृषि सब्सिडी और नागरिकों को सरकार द्वारा दी जा रही छूट से संबंधित आवेदन की कॉपियां भी प्राप्त कर सकते हैं.

ट्राइबल मॉनसून प्रोजेक्ट एक ऐसा प्रोजेक्ट है, जो सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर केंद्रित है. इसके जरिये भारतीय उपमहाद्वीप के सात शिल्पी समुदायों को दुनिया भर के कला-शिल्प संस्थानों से जोड़ा जा रहा है. ट्राइबलमॉनसून डॉट काम वेबसाइट पूर्वी क्षेत्र की सजावटी कला सामग्रियों को वैश्विक मांग से जोड़ता है और साथ ही दक्षिण एशिया और दूसरे देशों में भी कुटीर उद्योगों को सप्लाइ चेन से संबद्ध करता है.

ई गवर्नेस

आंध्र प्रदेश की सरकार ने 4 नवंबर 2011 को मी सेवा नाम से एक प्रोजेक्ट की शुरुआत की है जो नागरिकों को लक्ष्य करके उन्हें वेब आधारित आसान, पारदर्शी ऑनलाइन सेवा उपलब्ध कराती है. आपका काम हुआ या नहीं, इसकी जानकारी के लिए नागरिकों को कार्यालयों के चक्कर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. राजस्व, पंजीकरण, नगरपालिका, पुलिस, नागरिक सेवाएं, स्कूली शिक्षा, आरटीए और एनपीडीसीएल को सौ से अधिक नयी जीटूसी सेवाओं से जोड़ा गया है, जो एकीकृत प्रणाली के तहत काम करती हैं. यह बिल्कुल सिटीजन फ्रेंडली है और वे सहजता से इन विभागों की सेवा ले सकते हैं.

‘मीसेवा’ प्रोजेक्ट के तहत केंद्रीकृत, वेब आधारित भूमि सूचना तंत्र का निर्माण किया गया था, जिसके जरिये सभी वर्ग के लोगों को भूमि रिकॉर्ड से संबंधित जानकारी दी जाती है. इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (एमेंडमेंट) एक्ट, 2008 और आंध्र प्रदेश इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इलेक्ट्रिॉनिक सर्विस डिलिवरी) रूल्स, 2011 के आलोक में प्राधिकृत अधिकारियों के डिजिटल हस्ताक्षर वाले सर्टिफिकेट जारी किये जाते हैं. मीसेवा केंद्रों से और भी सुविधाओं को जोड़ने के प्रयास किये जा रहे हैं.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आधार 12 अंकों वाला एक यूनिक नंबर है, जो यूआइएडी (यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया) द्वारा भारत के सभी नागरिकों के लिए जारी की जायेगी (स्वैच्छिक आधार पर). इस संख्या को केंद्रीकृत डाटा में स्टोर किया जायेगा और जनांकिक सूचनाओं, बॉयोमेट्रिक सूचनाएं जैसे फोटो, फिंगरप्रिंट (सभी दस उंगलियों की) और आइरिस (पुतली) को इससे संबद्ध किया जा सकेगा.

इसे आसानी से ऑनलाइन, कर्म खर्च में सत्यापित किया जा सकेगा. वर्तमान में भारतीय कई आइडी प्रूफ का इस्तेमाल करते हैं, जैसे राशन कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आइडी और पासपोर्ट. कई देशों में एक स्वीकृत पहचान पत्र जारी किये जाते हैं, जो नौकरी लेने, बैंक खाता खोलने, ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने और यहां तक कि बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाने में भी अनिवार्य रूप से प्रयोग में लाया जाता है. अमेरिका में प्रत्येक नागरिक को एक नौ अंकों वाला सोशल सिक्यूरिटी नंबर जारी किया जाता है.

कुछ देशों में स्मार्ट कार्ड का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे जन्म के समय ही जारी किया जाता है और आगे नागरिक से जुड़ी हर सूचना अपडेट की जाती है. रिकॉर्ड की गयी सूचना में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी जानकारी, अपराध का ब्योरा, निवेश और प्रोपर्टी की जानकारी रहती है. इन आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे पता चलता है कि जनसंख्या के किस हिस्से को स्वास्थ्य संबंधी खतरे हैं या फिर किन्हें आर्थिक मदद की दरकार है.

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि सूचना और संचार तकनीक (आइसीटी) की प्रकृति पक्षपातरहित है, जिससे आम आदमी को सहूलियत मिली है. अब हमें रेलवे टिकट लेने के लिए लंबी लाइनों में खड़े रहने की जरूरत नहीं है, न ही हमें एयर टिकट खरीदने के लिए घर से बाहर निकलने की जरूरत है. सूचना एवं संचार तकनीक का ही असर है कि अब हम घर बैठे ही हवाई यात्र के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, अपनी पसंद की सीट चुन सकते हैं.

कहने का तात्पर्य यह है कि आइसीटी के जरिये किसी प्रोडक्ट को स्मार्ट प्रोडक्ट में बदला जा सकता है और उसमें कई सारी चीजें जोड़ कर उसकी उपयोगिता बढ़ायी जा सकती है. साधारण चाबी के रिंग में आपकी आवाज की पहचान करने वाले चिप लगाये जा सकते हैं ताकि जब आप चाबी रखने के बाद भूल जाये, तो आवाज लगाने पर चाबी से आवाज आये. एयरपोर्ट पर जब लगेज ट्रेकर पर आपका लगेज आपके करीब आता है, तो आपके करीब आते ही ट्रेकर से बीप की आवाज निकलती है, इससे आपको अपना सामान लेने में आसानी होती है. बाजार में दवाइयों के ऐसे बॉक्स उपलब्ध हैं, जिनमें अलार्म लगे होते हैं. जापान में ई टॉयलेट विकसित किये गये हैं, जो उसके प्रयोग में लाने वाले की पहचान करता है, शरीर का तापमान रिकॉर्ड करता है, पेशाब और पैखाने की जांच करता है और इससे जुड़े सारे परिणाम (परिवार से जुड़े हर सदस्य का) का डाटा स्टोर किया जाता है. यह अलग-अलग फोल्डर में डाला जाता है. एडवांस मॉडल इन डाटा को समय-समय पर फिजिशियन को उपलब्ध कराते हैं, जो नियमित रूप से चिकित्सीय सलाह देते हैं. दिलचस्प है कि उन्होंने शौचालय (लैवटोरी) को भी पैथोलॉजिकल लेबोरेटरी में बदल दिया है.

भारत दुनिया भर में बड़ी संख्या में इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर इंजीनियर पैदा करता है. कॉलेजों को चाहिए कि वो छात्रों को नवोन्मेष (इनोवेशंस) के लिए प्रोत्साहित करें, ताकि वे सामाजिक उद्यमी बन सकें. हमारे पास कई ऐसे अवसर हैं, जिससे आइसीटी के प्रयोग के जरिये कृषि में सुधार लाया जा सकता है और कई तरह की समस्याएं सुलझायी जा सकती हैं, जैसे कूड़ा निष्पादन (वेस्ट डिस्पोजल), प्रदूषण, विद्युत, प्राथमिक स्वास्थ्य और इस तरह की कई समस्याएं. भारत को एक विकसित देश में तब्दील करने में सूचना और संचार तकनीक की बड़ी भूमिका हो सकती है.

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