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पंडित बनना हुआ सपना

भागलपुर: वर्ष 2011 में संस्कृत महाविद्यालय, भागलपुर ने एक पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना तैयार की थी, जिसे पूरा करने के बाद छात्र पूजा-पाठ कराने का काम कर जीवन-यापन कर सकते थे. कॉलेज ने इस योजना को तैयार करने के बाद कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय को प्रस्ताव भेजा. विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम शुरू कराने के […]

भागलपुर: वर्ष 2011 में संस्कृत महाविद्यालय, भागलपुर ने एक पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना तैयार की थी, जिसे पूरा करने के बाद छात्र पूजा-पाठ कराने का काम कर जीवन-यापन कर सकते थे. कॉलेज ने इस योजना को तैयार करने के बाद कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय को प्रस्ताव भेजा. विश्वविद्यालय ने पाठ्यक्रम शुरू कराने के लिए राज्य सरकार से अनुमति प्राप्त करने को लेकर प्रस्ताव भेज दिया, पर आज तक न तो अनुमति मिली और न ही पाठ्यक्रम आरंभ हो पाया.

कर्मकांड का यह पाठ्यक्रम महज छह महीने का था. इसकी पढ़ाई पूरी करने के बाद विवाह, यज्ञोपवीत, श्रद्ध आदि कराने की योग्यता प्राप्त हो जाती. इसकी योजना तैयार होने की सूचनामात्र से छात्र-छात्रओं में एक नयी आस जगी थी, जो आज तक पूरी नहीं हो सकी. संस्कृत महाविद्यालय वैसे ही रखरखाव व साफ-सफाई के अभाव में अवशेष की तरह बन कर रह गया है.

यहां पढ़ाये जानेवाले उपशास्त्री, शास्त्री व आचार्य के कोर्स पढ़ने से रोजगार की दूर-दूर तक संभावना न देख छात्र-छात्राएं नामांकन लेने से हिचकते हैं. इसे ध्यान में रखते हुए गत वर्ष तत्कालीन कुलपति ने कॉलेज के निरीक्षण के दौरान व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को शुरू करने की घोषणा तो की, लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाये. वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत सहित कई अन्य धर्मग्रंथ, काव्य, महाकाव्य से भरे पुस्तकालय के लिए एक भी कर्मचारी नियुक्त नहीं हैं. पुस्तकों की देखरेख, उनकी कैटलॉगिंग, साफ-सफाई, पुस्तक की सुरक्षा आदि कभी नहीं हो पाती. पुस्तकालय में नया केवल यही है कि पिछले वर्ष विश्वविद्यालय ने लगभग 150 नयी पुस्तकें उपलब्ध करायी थी. महाविद्यालय के भवन जजर्र हो चुके हैं. परिसर देख यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पिछले कई वर्षो से उगी झाड़ियों को काटा नहीं जा सका है.

स्थिति यह है कि महाविद्यालय का पूरा स्वरूप जंगल में एक संस्थान का हो गया है. महाविद्यालय के अधिकतर कमरे अक्सर बंद ही रहते हैं. महाविद्यालय में छिटपुट दो-चार छात्र कभी दिख जाये, तो गनीमत है. कार्यबल की नियुक्ति की स्थिति पर गौर करें तो शिक्षक डॉ निर्मल कुमार सिंह के मुताबिक लगभग 350 छात्रों को पढ़ाने के लिए 11 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं. इसके मुकाबले चार वर्ष से प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ सीता चरण झा सहित चार शिक्षक ही रह गये हैं. इसके अतिरिक्त तीन शिक्षक प्रतिनियोजन के आधार पर कार्यरत हैं. वेद, न्याय, दर्शन, अर्थशास्त्र के शिक्षक वर्षो से नहीं हैं. शिक्षक डॉ सिंह ने बताया कि उन्हें केवल यह मौखिक सूचना है कि कर्मकांड पाठ्यक्रम का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास लंबित है. कर्मचारियों के चार स्वीकृत पदों में सभी भरे हुए हैं, लेकिन माली, गार्ड व स्वीपर की कमी हमेशा खलती है.

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