ऐसे समय में जब भारत ने भूख की समस्या का अंत करने के लिए ऐतिहासिक खाद्य सुरक्षा बिल को लोकसभा में पारित किया है, यह जानना दिलचस्प होगा कि दुनियाभर में भूख के खिलाफ जारी जंग कहां तक पहुंची है, किन देशों ने इस क्षेत्र में कितनी प्रगति की है और किस देश को इस जंग का रोल मॉडल माना जा रहा है? ऐसे सवालों के जवाब दे रहा है आज का नॉलेज..
21वीं सदी ने जब कैलेंडर के पन्नों पर दस्तक दी थी, उस समय विश्व के नेताओं ने दुनिया को बेहतर स्थान बनाने के लिए मिल कर कुछ वैश्विक लक्ष्य तय किये थे. ‘मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स’ या ‘सहस्नब्दी विकास लक्ष्य’ के नाम से जाने जानेवाले इन लक्ष्यों में सबसे प्रमुख था, दुनिया में 2015 तक गरीबों की कुल संख्या को आधे से कम करना और दुनिया के माथे से भुखमरी के कलंक को समाप्त करना.
विकासशील और सबसे कम विकसित देशों में भूख और कुपोषण की समस्या पर हालांकि पूरी तरह काबू पाने का सपना आज भी अधूरा है, लेकिन इन वर्षो में दुनिया के कई देशों ने इस दिशा में ठोस कदम उठाये हैं. सोमवार को भारत ने इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाते हुए खाद्य सुरक्षा कानून को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पारित कर दिया.
इसके राज्यसभा से पारित हो जाने के बाद देश की 67 फीसदी आबादी को रियायती दर पर हर माह पांच किलो अनाज पाने का अधिकार मिल जायेगा. भारत जैसे बड़ी आबादीवाले बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए यह एक ऐतिहासिक घड़ी है. भारत इस कानून को कितनी सफलता के साथ लागू कर पाता है और भुखमरी की व्यापक समस्या से देश को कब निजात मिल सकता है, यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि पिछले 13 वर्षो में दुनिया के कई देशों ने इस दिशा में बेहद अहम काम किये हैं और उल्लेखनीय सफलता हासिल की है.
संयुक्त राष्ट्र द्वारा 12 जून, 2013 को जारी एक प्रेस रिलीज के मुताबिक दुनिया के 38 देशों ने 2015 तक भूखों की संख्या आधी करने के लक्ष्य को हासिल कर लिया है. यह अपने आप में एक उत्साह जगानेवाली खबर है. संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक ये देश बेहतर भविष्य का नेतृत्व कर रहे हैं. इनकी कामयाबी इस बात का सबूत है कि अगर मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति और आपसी सहयोग की भावना के साथ काम किया जाये, तो भूखों की संख्या में कमी के लक्ष्य को काफी तेज गति से और टिकाऊ रूप से हासिल करना मुमकिन है.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के डायरेक्टर जनरल जोस ग्रैजियानो दा सिल्वा के मुताबिक इन 38 देशों में से 18 ने कुपोषित लोगों की संख्या को आधा करने के ज्यादा कठिन लक्ष्य को भी हासिल कर लिया है.
इन देशों में अरमेनिया, अजरबाइजान, क्यूबा, दिजिबोती, जॉजिर्या, घाना, गियाना, कुवैत, किर्गिस्तान, निकारागुआ, पेरू, सेंट विसेंट एंड दि ग्रेनेडाइन्स, सामाओ, साओ टोम एंड प्रिंसिपे, थाइलैंड, तुर्कमेनिस्तान, वेनेजुएला, और वियतनाम शामिल हैं.
इसके अलावा जिन देशों ने भुखमरी मिटाने के लक्ष्य को हासिल कर लिया है, उनमें अल्जीरिया, अंगोला, बांग्लादेश, बेनिन, कंबोडिया, कैमरून, चिली, डोमिनिक रिपब्लिक, फिजी, होंडुरास, इंडोनेशिया, जॉर्डन, मलावी, मालदीव, नाइजर, पनामा, टोगो, उरुग्वे शामिल हैं.
अभी लंबी दूरी तय करनी है
हालांकि भुखमरी खत्म करने की दिशा में विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये गये हैं, पर संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ‘वैश्विक स्तर पर भूख में जरूर गिरावट आयी है, लेकिन एक कटु सच्चई यह भी है, आज भी दुनिया के 87 करोड़ लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं. करोड़ों ऐसे हैं, जो विटामिन्स एवं मिनरल्स की कमी से ग्रसित हैं. इससे बच्चों का विकास बाधित हो रहा है.
दो अरब लोग सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं. जबकि 1.4 अरब लोग सामान्य से ज्यादा वजन के हैं. इनमें से 50 करोड़ लोग मोटापे के रोग से ग्रस्त हैं. इसमें यह भी जोड़ा जा सकता है कि दुनिया के पांच वर्ष से कम उम्र के 26 फीसदी बच्चे बाधित विकास से ग्रस्त हैं. इनमें से 31 फीसदी विटामिन–ए की कमी से जूझ रहे हैं.
ब्राजील ने कैसे घटायी गरीबी!
आज दुनियाभर में ब्राजील की पहचान गरीबी और भूख घटाने के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति करने के कारण है. ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा द्वारा 2003 में शुरू किये गये ‘जीरो हंगर’ प्रोग्राम का लक्ष्य ब्राजील में नकद हस्तांतरण द्वारा गरीबी पर लगाम लगाना और देश की बड़ी आबादी को गरीबी से बाहर निकालना था.
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के महानिदेशक, जोस ग्रैजियानो दा सिल्वा ने ब्राजील के फूड सिक्योरिटी मिनिस्टर के तौर पर देश के ‘जीरो हंगर’ प्रोग्राम की नींव रखी, जिसमें बोस्ला फैमिलिया कार्यक्रम शामिल था. ब्राजील में भूख से लड़ने के लिए एक बहुआयामी नीति को अपनाया गया, जिसका मकसद लोगों को सामाजिक मदद देना और पोषण की सुरक्षा करना है.
इसके लिए सशर्त कैश ट्रांसफर की नीति को अपनाया गया. गरीब नागरिकों को सामाजिक मदद सेवाओं का हकदार बनाया गया और समुचित और पोषणयुक्त भोजन को हर व्यक्ति का अधिकार बनाया गया साथ ही जोखिमवाले परिवारों के सामाजिक समावेशीकरण की कोशिशें भी की गयीं.
केंद्र, राज्य और नगरपालिका स्तर की सरकारें, नागरिक समाज के साथ मिल कर इन लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में काम कर रही हैं.
ब्राजील के जीरो हंगर कार्यक्रम का मुख्य घटक बोस्ला फैमिलिया कार्यक्रम है. यह एक सशर्त कैश ट्रांसफर प्रोग्राम है, जिसका मकसद इसमें शामिल परिवारों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना है. बोस्ला फैमिलिया कार्यक्रम से करीब 4.5 करोड़ ब्राजीली लाभान्वित हुए. इसमें 1.33 करोड़ परिवार हैं, जिनकी प्रतिमाह कमाई 60 अमेरिकी डॉलर प्रतिमाह थी.
इस कार्यक्रम द्वारा प्रति परिवार औसतन 36 अमेरिकी डॉलर प्रतिमाह मुहैया कराया जाता है. कैश ट्रांसफर की अधिकतम राशि 80 अमेरिकी डॉलर है. दी जानेवाली राशि का निर्धारण परिवार की आय और उसकी परिस्थिति को ख्याल में रख कर किया जाता है. दिये जानेवाले लाभ की गणना में परिवार के बच्चों की संख्या भी अहम भूमिका निभाती है. इस आय से हर परिवार के लिए भोजन और जीवन के दूसरे जरूरी सामान की उपलब्धता को सुनिश्चित किया गया.
परिवारों को यह लाभ मिले, इसके लिए जरूरी है कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे और टीकाकरण जैसे मूलभूत स्वास्थ्य कार्यक्रमों को अपनायेंगे. यह शर्त इस कार्यक्रम में शामिल लोगों के सामाजिक समावेशीकरण की जमीन तैयार करता है, साथ ही पीढ़ियों से चले आ रहे गरीबी के चक्र को तोड़ने में भी मददगार साबित होता है. बोस्ला फैमिलिया में शामिल परिवारों को दूसरे सरकारी लाभ भी मिलते हैं, जिनमें सब्सिडाइज्ड बिजली, शिक्षा कार्यक्रमों में बच्चों और वयस्कों को प्राथमिकता देना शामिल है.
बोस्ला फैमिलिया गरीब लोगों के लिए रोजगार के मौके पैदा करने और उनकी आय को बढ़ाने की दिशा में भी काम करता है. इनमें पेशेवर ट्रेनिंग, सामाजिक एंटरप्रेन्योरशिप और पारिवारिक कृषि के लिए मदद शामिल है. 2009 में बोस्ला फैमिलिया प्रोग्राम का बजट 4.95 अरब अमेरिकी डॉलर था.
सिर्फ अनाज देने से नहीं चलेगा काम
शोध और अनुभव बताते हैं कि अनाज बांटना गरीबी और भूख को मिटाने की दिशा में अल्पकालिक फायदा ही पहुंचा सकते हैं. भूख से लड़ने और भुखमरी मिटाने के लिए विश्व बैंक की सलाह है कि सरकारों को इन कदमों की ओर ध्यान देना चाहिए –
1. कृषि में निवेश किया जाये : क्योंकि कृषि में निवेश, उत्पादकता में वृद्धि, कृषि से जुड़े लोगों की आय बढ़ाये बिना, गरीबी और भूख को खत्म करना असंभव है.
2. नौकरी के अवसर पैदा किये जायें : भूख का संबंध आजीविका के साधन न होने से है. इसलिए अगर भूख की समस्या को सचमुच में समाप्त करना है, तो जरूरी है कि देश के बेरोजगारों के लिए उनकी क्षमता के हिसाब से नौकरी के अवसर मुहैया कराये जाएं.
3. सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत बनाया जाये : यह एक तथ्य है कि सामाजिक सुरक्षा न होने के कारण गरीबों की आय का बड़ा हिस्सा विपत्तियों का सामना करने पर खर्च हो जाता है. इसलिए अगर गरीबी और भूख की समस्या को कम करना है, तो सामाजिक सुरक्षा जाल को मजबूत करना होगा.
4. पोषण कार्यक्रमों की जद में दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लाया जाये : ऐसा इसलिए सबसे जरूरी है क्योंकि अगर इस उम्र में बच्चों को पोषण नहीं मिलता, तो वे कमजोर होते हैं और उनके स्वास्थ्य आदि पर समाज–परिवार को काफी खर्च करना पड़ता है.
5. सब तक शिक्षा पहुंचायी जाये : गरीबी और भूख का संबंध व्यक्ति की क्षमता, नौकरी पाने लायक योग्यता से है. इसलिए अगर गरीबी और भूख को वास्तव में मिटाना है, तो सब तक शिक्षा पहुंचाना जरूरी है.
6. लैंगिक समानता को बढ़ाया जाये : भूख का गहरा संबंध लैंगिक भेदभाव से माना गया है. इसे मिटाये बगैर भूख पर काबू पाना मुमकिन नहीं है.
7. जोखिम वाले देशों को संकट के समय मदद पहुंचायी जाये : अगर भूख से लड़ना है, तो जोखिमवाले देशों–क्षेत्रों को संकट के समय मदद पहुंचानी होगी, नहीं तो बाढ़, सूखा, महामारी की दशा में भूखे लोगों की मुश्किलें और बढ़ेंगी.
जीरो हंगर चैलेंज यानी लक्ष्य सिर्फ भूख मिटाना नहीं
हालांकि भूख की समस्या को खत्म करना एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि सिर्फ भूख शांत करना काफी नहीं है. जरूरी यह है कि लोगों की पहुंच पोषक भोजन तक भी हो. इस लक्ष्य को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने जीरो हंगर चैलेंज का नाम दिया है. इसके पांच लक्ष्य इस प्रकार हैं–
1. यह सुनिश्चित किया जाये कि दुनिया के हर व्यक्ति के पास साल भर पर्याप्त मात्र में पोषक तत्वों से युक्त भोजन हो.
2. कुपोषण के कारण बच्चों का विकास बाधित न हो.
3. एक धारणीय या टिकाऊ खाद्य व्यवस्था विकसित की जाये.
4. छोटे जोतवाले किसानों की उत्पादकता और कमाई को दोगुना किया जाये.
5. भोजन बर्बाद होने से बचाया जाये.
भूख को मिटाने की दिशा में दुनिया
– 45 देश, 84 देशों में से गरीबी को आधा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं.
– 27 प्रतिशत कम लोग 1990 की तुलना में 2015 में गरीबी में रह रहे होंगे.
– 25 देश, 55 देशों में से बाल कुपोषण को आधा करने की राह में आगे बढ़ रहे हैं.
खाद्य सुरक्षा बिल
लोकसभा ने सोमवार को खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित करके देश से भूख की समस्या को मिटाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है. सरकार का यह फैसला स्वागतयोग्य है, लेकिन यहीं यह समझना भी जरूरी है कि आखिर इस कानून का फायदा किसे मिलेगा, सरकार को इस कानून को लागू कराने के लिए क्या इंतजाम करने होंगे और इससे जुड़ी चुनौतियां क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक के बारे में ऐसे कई सवालों के जवाब देने की एक कोशिश..
खाद्य सुरक्षा विधेयक की खास बातें
खाद्य सुरक्षा कानून द्वारा देश की दो–तिहाई आबादी को सरकार की ओर से सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराया जायेगा. इस विधेयक में लाभ प्राप्त करनेवालों को प्राथमिकता वाले परिवार और सामान्य परिवारों में बांटा गया है.
प्राथमिकता वाले परिवारों में गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजारनेवाले और सामान्य श्रेणी में गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को रखने की बात कही गयी है. इस विधेयक के तहत ग्रामीण क्षेत्र में 75 फीसदी लोगों को शामिल किया जायेगा, जबकि शहरी क्षेत्र के तकरीबन 50 फीसदी लोगों को इसमें शामिल किया जायेगा. विधेयक के मसौदे के प्रावधानों के तहत देश की 67 प्रतिशत जनता को खाद्य सुरक्षा प्रदान की जायेगी. विधेयक को पारित करते समय इसमें किये गये संशोधन में स्पष्ट किया गया कि यदि सरकार इसके लाभार्थियों को अनाज मुहैया कराने में विफल रही, तो उन्हें खाद्य सुरक्षा भत्ता देगी.
कितना और क्या देगी सरकार?
खाद्य सुरक्षा योजना के तहत मिड–डे मील और आइसीडीएस योजना को भी शामिल किया जायेगा. इसके तहत प्रत्येक प्राथमिकता वाले परिवारों को तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं उपलब्ध कराने की बात कही गई है. इस योजना को फिलहाल तीन वर्ष के लिए लागू करने की बात कही जा रही है. निर्धनतम श्रेणी में आनेवाले लोगों को अंत्योदय अन्न योजना के तहत पहले की तरह ही 35 किलो अनाज प्रति माह मिलता रहेगा.
क्या–क्या मिलेगा?
इस विधेयक के तहत अगले तीन वर्षो तक चावल तीन रुपये किलो, गेहूं दो रुपये किलो और मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा आदि) एक रुपये किलो की दर से देने का प्रावधान है. गर्भवती महिला और बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं को भोजन के अलावा अन्य मातृत्व लाभ के साथ 1000 रुपये नकद भी दिया जायेगा.
कौन होगा लाभ पाने का हकदार?
योजना का लाभ पाने का हकदार कौन होगा, इसका निर्धारण राज्यवार आंकड़ों और स्थितियों के मुताबिक योजना आयोग द्वारा किया जायेगा. इसके लाभार्थियों के चयन की जिम्मेवारी संबंधित राज्य/केंद्र शासित क्षेत्रों की सरकारों को सौंपी जायेगी, जो राज्य की आर्थिक–सामाजिक हालातों के मुताबिक इसे तय करेंगे.
घर की सबसे बुजुर्ग महिला को परिवार का मुखिया माना जायेगा. इस योजना के लाभार्थियों को पहले दो श्रेणियों में बांटा गया था, लेकिन इसे संशोधित करते हुए इसमें एक ही श्रेणी रखी गयी है, जिसके तहत परिवार में प्रत्येक सदस्य के हिसाब से राशन मुहैया कराया जायेगा.
महिलाओं और बच्चों के लिए क्या है खास
इसमें बच्चों और महिलाओं के पोषण का खास ख्याल रखा गया है. गर्भवती महिलाओं और दूध पिलानेवाली माताओं को अन्य सुविधाओं के अलावा मातृत्व लाभ के तौर पर कम से कम 6,000 रुपया दिया जायेगा. छह माह से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए जरूरत के मुताबिक निर्धारित पोषण के अनुरूप बना–बनाया खाना दिये जाने का प्रावधान भी किया गया है.
कैसे हासिल होगा यह अनाज
फिलहाल इसे जन वितरण प्रणाली के माध्यम से ही देने का इंतजाम हो रहा है, लेकिन सूचना एवं संचार तकनीक (आइसीटी) का इस्तेमाल करते हुए इसे ‘आधार’ से जोड़ा जायेगा और लाभार्थियों के घरों तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की जायेगी.
क्या होगा अन्य योजनाओं का
कुछ अन्य स्कीमों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है: अंत्योदय अन्न योजना (जो गरीबों में भी बेहद गरीब हैं), मध्याह्न भोजन स्कीम, छह माह से दो वर्ष तक के बच्चों और उनकी माताओं के लिए चलायी जा रही स्कीम और छह माह से छोटे बच्चों और उनकी माताओं के लिए चलायी जा रही स्कीम यानी आइसीडीसी. फिलहाल, राज्य सरकार की योजनाओं के अलावा गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजारनेवाले 32 करोड़ लोगों को केंद्र सरकार सस्ता अनाज मुहैया करायेगी.
कैसे चलेगा कार्यक्रम
अभी यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाया है. माना जा रहा है कि जन–वितरण प्रणाली के माध्यम से इसे लागू किया जायेगा. प्रत्येक जिले में एक शिकायत अधिकारी होगा, जो स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन से जुड़ी शिकायतों को निबटायेगा. राज्य और जिला स्तर पर इसके लिए नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जायेगी.
प्रत्येक राज्य में कार्यक्रम के निरीक्षण के लिए एक खाद्य कमीशन होगा.अगर कोई कानून का पालन नहीं करता तो आयोग उस पर कार्रवाई कर सकता है. इसके सुचारु संचालन के लिए कॉल सेंटर और हेल्पलाइन भी चलाया जा सकता है.
अर्थव्यवस्था पर असर
इस विधेयक के कानून में बदल जाने के बाद अनाज की मांग 612.3 लाख टन हो जायेगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस पर वार्षिक तौर पर तकरीबन 1,24,747 करोड़ रुपये का खर्च होगा. इससे देश के भुगतान खाते का घाटा और बढ़ जायेगा, जो पहले ही बेहद खराब हालत में है.
जानकारों का मानना है कि देश में अकाल जैसे हालात पैदा होने या अनाज की कम पैदावार होने की दशा में पर्याप्त तादाद में अनाज जुटाने के लिए इसे विदेशों से खरीदना पड़ सकता है. इससे दुनियाभर में अनाज की कीमतों पर असर पड़ेगा और हमें महंगा अनाज खरीदना पड़ सकता है.