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कब चेतेगा प्रशासन

पटना: गंगा नदी में चलने वाली नावों पर प्रशासन की सख्ती का असर नहीं दिखता है. हर साल बारिश से पहले चेतावनी दी जाती है, बावजूद दुर्घटनाएं नहीं रुकती हैं. नावें भगवान भरोसे चलती हैं. इन्हें न तो फिटनेस की चिंता है और न लाइसेंस की. डाला भर कर सवारी बैठायी और चल दिये. दानापुर […]

पटना: गंगा नदी में चलने वाली नावों पर प्रशासन की सख्ती का असर नहीं दिखता है. हर साल बारिश से पहले चेतावनी दी जाती है, बावजूद दुर्घटनाएं नहीं रुकती हैं. नावें भगवान भरोसे चलती हैं. इन्हें न तो फिटनेस की चिंता है और न लाइसेंस की. डाला भर कर सवारी बैठायी और चल दिये. दानापुर से मोकामा तक गंगा में चलने वाली नावों पर यह नजारा देखा जा सकता है.

चलतीं हैं ओवरलोडेड नावें
गंगा में चलने वाली अधिकतर नावें ओवरलोडिंग ही चलती हैं. अधिकारियों के मुताबिक सबसे छोटी नाव में अधिकतम 18, मध्यम में 25 और बड़े नावों में 40 से 50 यात्रियों को बिठाने की क्षमता है, लेकिन अधिक कमाई की लालच में क्षमता से दो से तीन गुने अधिक यात्री बिठा लेते हैं.

सीओ नहीं दिखाते रुचि
पूर्व में नावों के निबंधन की पूरी जिम्मेवारी परिवहन विभाग की थी, लेकिन बाद में इसकी जिम्मेवारी संबंधित एसडीओ को सौंप दी गयी. नाविक फॉर्म भर कर सर्किल अफसर व अंचलाधिकारी के माध्यम से अनुमंडल कार्यालय में जमा कराते हैं, जहां से उन्हें फिटनेस जांच के लिए डीटीओ कार्यालय भेज दिया जाता है. इसके बाद एमवीआइ नाव की फिटनेस जांच कर अपनी रिपोर्ट देते हैं. एमवीआइ की क्लियरेंस के बाद एसडीओ के स्तर पर नाव का लाइसेंस निर्गत किया जाता है. अधिकारियों के मुताबिक स्थानीय स्तर पर सीओ व थानाध्यक्ष इस कार्य में रुचि ही नहीं दिखाते, जिससे निबंधन का कार्य आगे नहीं बढ़ पाता है.

नहीं कराना चाहते निबंधन
अधिकारियों की मानें तो अधिकतर नाविक अपनी नाव का निबंधन ही नहीं कराना चाहते हैं. निबंधन कराने पर स्थायी स्थल से लेकर कार्य प्रयोजन तक की पूरी जानकारी का रिकॉर्ड प्रशासन के पास रहेगा. ऐसी स्थिति में कोई भी गलत काम किये जाने पर कार्रवाई हो सकती है. दूसरा निबंधन कराने से उनको कोई खास फायदा भी नहीं होता है. इसलिए आवेदन ही जमा नहीं कराते. प्राइवेट नाव का अधिकतर इस्तेमाल अवैध रूप से बालू ढोने तथा जलीय जीवों के संहार में किया जाता है.

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