एडवांस टेक्नोलॉजी – 2
दुनिया भर में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को फिर से विस्तार देने की बात हो रही है, ताकि जीवाश्म ईंधन (कोयला एवं पेट्रोलियम) का सही इस्तेमाल किया जा सके. रेलवे में तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है, ताकि उनकी दक्षता बढ़े. कई ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित किये गये हैं, जिससे ट्रेनों में ईंधन की खपत न्यूनतम की जा सके.
सेंट्रल डेस्क
रेलवे इंजीनियरों का मानना है कि ब्रेक प्रणाली के ठीक से काम नहीं करने के कारण अधिकतर रेल दुर्घटनाएं होती हैं. पर यही एक मात्र कारण नहीं है. कई बार ड्राइवर के अचानक जोर से ब्रेक लगाने के कारण ट्रेन पटरी से उतर जाती है. ढलान पर, अगर हल्के भार वाले डिब्बे अधिक वजन लदे डिब्बों से आगे लगे होते हैं, तो वे कई बार पटरी से उतर जाते हैं. रेलवे इंजीनियर यह सिद्धांत भलीभांति जानते हैं कि कम वजन लदे डिब्बों को ट्रेन के सबसे पीछे रखा जाना चाहिए. पर व्यवहार में इसका ख्याल रख पाना संभव नहीं हो पाता, क्योंकि मालगाड़ियों के डिब्बों में माल चढ़ता-उतरता रहता है.
यही कारण है कि प्राय: मालगाड़ियों के डिब्बे पटरियों से उतर जाते हैं. लेकिन नयी तकनीक के इस्तेमाल से ट्रेनों के गतिविज्ञान (डायनामिक्स) को बेहतर तरीके से समझा गया है.
वजन से संबंधित आंकड़े को वेब के जरिये तुरंत रेलवे ऑपरेटरों को भेज दिया जाता है, जो ट्रेनों में वजन के हिसाब से डिब्बों को संतुलित करते हैं या फिर उसी हिसाब से डिब्बों पर ब्रेक को एडजस्ट करते हैं. इस तकनीक के इस्तेमाल से अमेरिका और कनाडा में दोषपूर्ण भार वितरण (पुअर वेट डिस्ट्रिब्यूशन) से होने वाली ट्रेन दुर्घटनाओं में जबरदस्त कमी आयी है.
एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का इस्तेमाल : ट्रेनों में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के इस्तेमाल से ऊर्जा बचत की तकनीक अपनायी जा रही है. बॉमबार्डियर कंपनी सऊदी अरब की राजधानी रियाद और ब्राजील की राजधानी साओ पोलो में मोनोरेल लाइनों का विकास कर रही है, जो पारंपरिक लाइनों के मुकाबले 25 प्रतिशत हल्की होती हैं. मोनोरेल में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग का कमाल है कि मेट्रो ट्रेन के मुकाबले प्रति यात्री 10 प्रतिशत कम ऊर्जा की खपत होती है.
(द इकोनॉमिस्ट पत्रिका से साभार)