देवघर : कहते हैं कि इंसान में भी इंसानियत नहीं रहा और संवेदना जताने वाले भी कुछ नहीं कर सके. ऐसा ही वाक्या दिखा सदर अस्पताल में. एक घायल करीब एक सप्ताह से अधिक दिनों से सदर अस्पताल में इलाजरत था. भरती कर इलाज किया जा रहा था. बावजूद उसे केयर करने वाला कोई नहीं था.
अस्पताल की ओपीडी के पीछे शेड में जमीन पर पड़ा–पड़ा उक्त घायल तड़पता रहा. अंतत: रविवार को वहीं उसकी मौत हो गयी. और तो और उसकी लाश को भी देर शाम तक किसी ने नहीं उठाया. उसकी शरीर देख कर ऐसा लग रहा था कि कई दिनों से उसे भोजन भी नहीं मिला हो. महज उसके एक घाव का सदर अस्पताल में इलाज नहीं हो सका. दरअसल उसे जसीडीह स्टेशन के श्रवणी मेला शिविर से कुछ दिन पूर्व लाकर भरती कराया गया था. उसके दोनों पांव कटे थे.
जख्म में कीड़ा हो गया था. उसके जख्म को सही तरीके से ड्रेसिंग करने वाला कोई नहीं था. कोई उसे हाथ लगाना भी नहीं चाहता था. स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार उसकी पट्टी बदली जाती. जख्म का ड्रेसिंग होता तो शायद उसकी जान बच सकती थी?