।।शीतला सिंह।।
(संपादक, जनमोर्चा)
विश्व हिंदू परिषद की यात्र को लेकर तनातनी के मद्देनजर उत्तर प्रदेश सरकार ने अयोध्या और उसके आसपास के जिलों में सुरक्षा बल तैनात कर दी है. इससे पहले सरकार ने 25 अगस्त से 13 सितंबर तक प्रस्तावित 84 कोसी परिक्रमा पदयात्र को प्रतिबंधित कर दिया. विहिप नेताओं एवं अयोध्या के संतों ने यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह से इस यात्रा के लिए पुलिस संरक्षण प्रदान किये जाने का आग्रह किया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि इसका उद्देश्य अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण है. यही सरकार के लिए प्रतिबंध लगाने का आधार बन गया, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और उसने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दे रखा है.
मणिराम दास की छावनी के महंत पद पर रहते हुए 50 वर्ष पूरा होने की स्वर्ण जयंती एवं उनके 75 वर्ष आयु पूरी करने के उपलक्ष्य में जो अमृत महोत्सव का आयोजन किया जा रहा था, यह प्रसंग उसी में उठा था और यह घोषणा भी अमृत महोत्सव का एक अंग थी. बाद में विहिप ने इसे अपनाया और इसके लिए पूरे देश के विभिन्न भागों में इसे सफल बनाने का प्रयत्न भी आरंभ कर दिया. जहां तक 84 कोसी परिक्रमा का संबंध है, वह तो चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से आरंभ होकर बैशाख शुक्ल नवमी तक चलता है.
भादो महीने में यह एक नयी परंपरा की शुरुआत थी. प्रदेश सरकार के समक्ष भी यही प्रश्न था कि आम चुनाव के पहले ऐसे आंदोलन के प्रति क्या दृष्टिकोण अपनाये. उन्हें संविधान के मौलिक अधिकारों में आने-जाने, रहने, पूजा-पाठ और सभी सम्मेलन करने की गारंटी के तहत लें या इसके विपरीत मानकर कानून व्यवस्था, धार्मिक सद्भाव की रक्षा के रूप में देख कर प्रतिबंधात्मक व्यवस्थाओं का सहारा लेकर रोके? यूपी सरकार ने विहिप प्रतिनिधिमंडल से मिलने के समय ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अधिकारियों से स्थिति की समीक्षा करायेगी और इसके बाद ही कोई निर्णय लेगी.
यह प्रश्न सिर्फ विहिप का ही नहीं था कि भारत जैसे बहुधर्मी विश्वासवाले देश में लोगों को राजनीतिक लाभ के लिए मानमाने अयोजनों की छूट देकर उनके परिणामों को भुगता जाये. उसके सामने यह भी पूछा गया था कि यदि भादो में भी कोई राम जन्मोत्सव नाम का आयोजन राजनीतिक लाभ उठाना चाहे, तो क्या इसे स्वीकार किया जायेगा? संविधान में जो मौलिक अधिकार गिनाये गये हैं, उनमें से कोई भी पूर्ण नहीं है, बल्कि सभी युक्तियुक्त प्रतिबंधन के तहत आते हैं. उनका निर्धारण यदि विवाद में हो तो न्यायालय को ही व्याख्या करने और किसी निर्णय को विधान सम्मत मानने या न मानने का भी अधिकार है.
जहां तक विहिप के 84 कोसी परिक्रमा कार्यक्रम का संबंध है, जिसे बाद में यात्रा कहा गया, पर मार्ग वही रखा गया जो 84 कोसी परिक्रमा का था, के अंतर्गत छह जिले- फैजाबाद, गोंडा, बहराइच, बस्ती, अंबेडकर नगर, बाराबंकी आते हैं. इनमें अयोध्या के साथ ही पास के जिले भी हैं, जिनमें भाजपा का राजनीतिक प्रभाव 1992 में बाबरी मसजिद विध्वंस के बाद से घटता गया है.
इस गैर पारंपरिक कार्यक्रम से सबसे अधिक चिंतित अल्पसंख्यक समुदाय था और वह यही चाहता था कि ऐसा कुछ न हो, क्योंकि इसके द्वारा अपनी मांगों में यह रखा गया था कि इस क्षेत्र में नयी मसजिद और इसलामिक सांस्कृतिक केंद्र नहीं बनने चाहिए, यानी वह संविधान की उन व्यवस्थाओं के विपरीत था जिसमें धर्म के नाम पर भेदभाव न करने की गारंटी दी गयी है. वहां अल्पसंख्यकों के हजारों पूजा स्थल शिक्षण और सांस्कृतिक केंद्र विद्यमान हैं. यदि इन क्षेत्रों में इतर धर्मी रहंेगे तो उन्हें पूजा के अधिकारों से कैसे वंचित किया जा सकता है. विहिप ने अयोध्या में दोराही कुआं के पास एक मसजिद के पुनरुद्धार में बाधा डालने का अभियान चलाया था, फिलहाल वहां यथास्थिति के लिए उनके 18 नेताओं ने एहतियाती जमानत देकर मुक्ति पायी थी.
विहिप इस निर्णय को धार्मिक भावना पर प्रहार बता रहा है. हालांकि वह यह नहीं बता रहा है कि इसके पीछे निहित उद्देश्य धार्मिक मान्यताओं पर आधारित कैसे माने जायेंगे, क्योंकि यह प्राचीन परंपराओं ऐतिहासिक संदर्भो और वर्तमान यथास्थिति के विरोधी हैं. अब विहिप अनुमति मिलने तक समर्थकों से अभियान चलाने का आह्वान कर रहा है. सरकार का संकट है कि सरकारी सेवाओं में सांप्रदायिक मानसिकता वाले तत्वों की कमी नहीं है, वे कहीं सरकार की इच्छा के विपरीत कुछ न करने लगें. हालांकि सब सवाल के जवाब पर निर्भर करेगा कि क्या विहिप कोई बड़ा आंदोलन खड़ा कर पायेगी?