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चाय के बहाने हम आपसे दोस्ती करेंगे

अजय चोपड़ा वे अब सेलिब्रिटी शेफ हैं और अपने इस अनुभव को पूरी जिंदादिली से जीते हैं. चम्मच और तेल उनके दोस्त यार हैं. वे लोगों के दिलों तक खाने का स्वाद चखा कर पहुंचना चाहते हैं, क्योंकि वह किचन किंग हैं. बात हो रही है मास्टर शेफ अजय चोपड़ा की, जिन्होंने मास्टर शेफ इंडिया […]

अजय चोपड़ा

वे अब सेलिब्रिटी शेफ हैं और अपने इस अनुभव को पूरी जिंदादिली से जीते हैं. चम्मच और तेल उनके दोस्त यार हैं. वे लोगों के दिलों तक खाने का स्वाद चखा कर पहुंचना चाहते हैं, क्योंकि वह किचन किंग हैं. बात हो रही है मास्टर शेफ अजय चोपड़ा की, जिन्होंने मास्टर शेफ इंडिया के बाद फूड फूड चैनल के साथ एक और पारी की शुरुआत की है. यहां वे लोगों से चाय के बहाने दोस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं. अजय मानते हैं कि अगर आप किसी से दोस्ती कर लें, तो फिर इससे बेहतर रिश्ता और कोई हो ही नहीं सकता. पेश है अनुप्रिया अनंत से हुई बातचीत के मुख्य अंश..

अजय, अपने शो हाय टी के बारे में बताएं?

हाय टी एक ऐसा शो है, जिसमें मैं आपको चाय बनाने की तरकीब बताता हूं और इसमें चाय की रेसिपी शामिल होती है. हालांकि चाय तो बस एक बहाना है, मैं इस शो के माध्यम से आपसे दोस्ती करने की कोशिश कर रहा हूं. जैसे भारत में हम हर बात पर कहते हैं कि चलो यार चाय पीते हैं.. चलिये चाय पीते हैं.. और चाय पीते-पीते कितनी सारी गपशप हो जाती है. इस कार्यक्रम का भी यही उद्देश्य है. इस शो में हमारी कोशिश रहेगी कि हम आपको घर बैठे-बैठे पूरे विश्व की सैर करायें.

अब आप सेलिब्रिटी शेफ बन चुके हैं. किस तरह बदल चुकी है आपकी जिंदगी?

बहुत बदल चुकी है. मैं मानता हूं कि ‘नोबडी’ होने से अच्छा है कि कम से कम आप ‘समबडी’ तो हैं. मेरा ख्याल है कि मैं बहुत बड़ा सेलिब्रिटी नहीं हूं, लेकिन कम से कम लोग अब मुझे जानने तो लगे हैं. मुझे इस बात की खुशी है. मास्टर शेफ से मुझे एक बड़ा मौका मिला और मैं शुक्रगुजार हूं अपने वेस्टिन होटल के प्रबंधक और मेरे बॉस का, जिन्होंने मुझे यह मौका दिया. एक बड़ा मौका दिया और मैंने इसका पूरा इस्तेमाल भी किया. अब कहीं भी जाता हूं तो लोग मुझे मास्टर शेफ वाले शेफ कह कर बुलाते हैं. यह सुन कर काफी खुशी मिलती है. मैं जो करना चाहता था मैंने किया. इसके लिए मैं खुदा का शुक्रिया अदा करता हूं कि मुझे यह मौका मिला और यह जिंदगी मिली.

हाल ही में मास्टर शेफ जूनियर की शुरुआत हुई है. क्या आपको लगता है कि यह कांसेप्ट सही है? क्या बच्चों से खाना बनवाना चाहिए? क्या बच्चे इसमें सेफ हैं?

नहीं, मुझे नहीं लगता कि शो के कांसेप्ट में कोई दिक्कत है. ये नये तरीके का शो है. हां, जहां तक बात बच्चों की सेफ्टी को लेकर है, तो उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा है. बच्चों को तेज धार वाले चाकू की जगह प्लास्टिक वाले चाकू दिये गये हैं. वैसे गैस रखे गये हैं जो सेफ हैं. दूसरी बात यह है कि आज के बच्चे बहुत जानकार हो गये हैं. वे हमसे ज्यादा टैलेंटेड हैं. जिस डिश का नाम हमें पता भी नहीं होता, वे उसे बता देते हैं. मैं देखता हूं कि कई ऐसे डिश हैं, जिसके बारे में बड़े लोग नहीं बता पायेंगे कि उसमें क्या है. लेकिन वे बखूबी बता देते हैं. इससे पता चलता है कि वे खाने को केवल खाने से नहीं, बल्कि मनोरंजन और खुद को एक्सप्लोर करने के लिए इस शो में दिलचस्पी ले रहे हैं. बच्चों की सेफ्टी का ख्याल रखते हुए अगर आप कोई शो बना रहे हैं, तो इसमें कोई परेशानी नहीं है.

अजय, आपके मन में यह ख्याल कब आया कि आपको इस प्रोफेशन में आना चाहिए?

हर कोई कहता है कि मैंने अपनी मम्मी से कूकिंग सीखी है. लेकिन मेरे साथ कहानी थोड़ी अलग है. मैं जब तकरीबन नौ साल का था, तब से खाना बनाने लगा था. नौ साल के बाद मां बाप भी बच्चे को गैस चूल्हे के पास जाने देने लगते हैं. मैंने भी वहीं से शुरुआत की थी. मैं मीडिल क्लास फैमिली से था. कभी-कभार हमारे घर पर खाना बच जाता था, तो उसे फ्रीज में रख दिया जाता था. चूंकि घर में सभी वर्किग थे. डिनर में जब हम खाने बैठते थे, तो मेरे भाई कहते कि अरे कुछ अलग सा मिलना चाहिए. तो मैं अलग-अलग तरीके से दाल में तड़का देता. कुछ नये-नये एक्सपेरिमेंट करता. इस तरह कूकिंग की शुरुआत अपने घर से हुई. अगर कहीं जाता तो पूरा ध्यान देता कि कौन कैसे किस चीज को पका रहा है. खासतौर से मैं ठेले वाले को देखता कि वह कैसे प्याज काटता है. आपने देखा होगा कि मेरा एक अलग अंदाज है कि मैं बात करते हुए भी प्याज काट लेता हूं. सब कुछ देखने के बाद घर पर आकर वही प्रैक्ट्सि करता था. फिर धीरे-धीरे इसमें मुझे खुशी मिलने लगी तो मुझे लगा कि अब इसी प्रोफेशन में जाना चाहिए और आ गया.

आपका पसंदीदा व्यंजन कौन सा है?

मां बनाये तो राजमा चावल और अगर पत्नी बनाये तो मखनी पुलाव मुझे बेहद अच्छा लगता है. और अगर मैं कुछ बनाऊं, तो मुझे कलौंजी कबाब अच्छा लगता है.

अजय, महिलाओं को किचन की रानी समझा जाता है. लेकिन भारत में महिला शेफ की संख्या न के बराबर है. ऐसा क्यों? ऐसी क्या वजह है कि महिलाएं इस क्षेत्र में नहीं आती हैं?

मुझे लगता है कि शेफ का जो प्रोफेशनल वर्ल्ड है, वह बहुत टफ है. मैं ऐसा नहीं कह रहा कि महिलाएं टफ नहीं होतीं, लेकिन कई ऐसी चीजें हैं, जो वह ङोल नहीं पातीं, तो शायद इसलिए वे इस प्रोफेशन में कम ही आ पाती हैं.

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