रांची: रांची में सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम पर आयोजित कार्यशाला में यूनिसेफ के झारखंड प्रभारी जॉब जकारिया ने कहा कि झारखंड में प्रत्येक वर्ष आठ लाख बच्चों का जन्म होता है. 60 प्रतिशत बच्चों का जन्म घरेलू प्रसव के दौरान होता है, जिनका निबंधन नहीं हो पाता है. 20 प्रतिशत बच्चों का जन्म सरकारी अस्पतालों में होता है. वहां भी इन बच्चों का निबंधन नहीं होता, क्योंकि वहां निबंधन का अनिवार्य फार्म और पंजिका उपलब्ध नहीं है. यह भयावह स्थिति है. इसमें से 45 फीसदी बच्चों का ही निबंधन होता है, जिसमें से 11 प्रतिशत को प्रमाण पत्र मिलता है. जो भयावह स्थिति है.
जन्म व मृत्यु का निबंधन अनिवार्य
योजना सचिव अविनाश कुमार ने कहा कि देश में जन्म और मृत्यु का निबंधन कराना अनिवार्य है. इसे सफल करने के लिए सभी जन प्रतिनिधियों को जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग, सांख्यिकी विभाग और नगरीय प्रशासन के बीच समन्वय स्थापित कर, पंचायतों से लेकर जिला मुख्यालय तक जन्म और मृत्यु का निबंधन कराने पर जोर दिया जा रहा है. आनेवाले वर्षो में सभी जिले ई-डिस्ट्रिक्ट बन जायेंगे. इसके लिए सभी जिलों के उपायुक्त और जिला सांख्यिकी पदाधिकारी के बीच सामंजस्य जरूरी है. उन्होंने कहा कि जन्म और मृत्यु निबंधन के आंकड़े विकास योजनाओं लिए महत्वपूर्ण को लेकर आंकड़ों का महत्व रहता है. कार्यक्रम को जनगणना निदेशालय के संयुक्त निदेशक सीएस त्रिपाठी, योजना एवं विकास विभाग के विशेष सचिव डीके सक्सेना ने भी संबोधित किया.
राष्ट्रीय औसत से पीछे है झारखंड
सांख्यिकी निदेशालय के पीके सिन्हा ने कहा कि झारखंड में सिर्फ 58 प्रतिशत बच्चों का ही जन्म निबंधित है. जबकि 42 प्रतिशत मृत्यु का निबंधन कराया जा रहा है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. उन्होंने बताया कि राज्य भर में 8964 निबंधन इकाइयां हैं. सभी कार्यरत नहीं हैं. स्वास्थ्य विभाग की सभी पीएचसी, सीएचसी, एपीएचसी निबंधन इकाइयां हैं. पर वहां जागरूकता की कमी है. निबंधन को आइटी विभाग से जोड़ने का काम चल रहा है. प्रज्ञा केंद्रों से होनेवाले निबंधन की पूरी जानकारी भी नहीं मिल पाती है.