नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि पत्नी की वित्तीय स्वतंत्रता उसके पति द्वारा शुरु की गयी तलाक की प्रक्रिया को स्थानांतरित करने की उसकी याचिका को ठुकराने का आधार नहीं हो सकती.
न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र के नेतृत्व वाली पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा इस संबंध में दिये गये उस फैसले को अवैध और बुद्विमत्ता से परे करार दिया, जिसमें अदालत ने महिला की इस याचिका को ठुकरा दिया था कि उसके पति द्वारा दाखिल तलाक याचिका पर सुनवाई को उसके घर के करीब की अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाए.
महिला की मांग थी कि उसके पति द्वारा दाखिल तलाक के मामले को हैदराबाद से पूर्वी गोदावरी जिले में काकीनाडा की पारिवारिक अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाए. उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए महिला की याचिका को ठुकरा दिया था कि वह एक निजी क्षेत्र की फर्म में कंपनी सचिव के तौर पर काम करती है और अपने माता पिता पर आश्रित नहीं है. अदालत ने कहा कि महिला अपने अभिभावकों के घर में इसलिए ठहरी है ताकि वह तलाक से जुड़े मामले को स्थानांतरित करवा सके.
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने इस संबंध में व्यवस्था दी, ऐसा लगता है कि उच्च न्यायालय का ध्यान इस तथ्य की तरफ नहीं गया कि एक तरफ तो महिला के पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मामला दर्ज किया और दूसरी तरफ वह यह भी चाहता है कि यह मुकदमा उसकी पसंद के स्थान पर चले. पीठ ने मामले को काकीनाडा स्थानांतरित करने की महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया.