हाल ही में सीमा पर पांच जवानों की शहादत पर जहां हमारी सरकार चुप्पी साधे हुए है, वहीं पाकिस्तान बार–बार सीजफायर का उल्लंघन करता जा रहा है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. इन सबके बीच बिहार के दो मंत्रियों का बयान हमारे ही जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए काफी था.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हर हमले के बाद अपने जवानों को खोना, उस पर ओछी राजनीति करना, थोड़े–बहुत घड़ियाली आंसू बहाना और उन्हें मेडल देकर अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री कर लेना ही बाकी रह गया है? या फिर अब ‘सॉफ्ट स्टेट’ की छवि से बाहर निकल कर समय को भांपते हुए माकूल जवाब दिया जाये. हालांकि हिंसा की पैरोकारी ठीक नहीं, पर ऐसे देशहित से जुड़े मसले पर चुप बैठना भी ठीक नहीं.
पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए हम अपने सियासतदानों से कैसे यह उम्मीद कर लें कि वे इस स्वतंत्रता दिवस को बस 15 अगस्त की तारीख में न समेट कर हिंदुस्तानी जम्हूरियत को यह भरोसा दिलायेंगे कि उन्हें इस देश की फिक्र है और वे कोई ठोस कदम उठाने वाले हैं? हमें अब उन पर दबाव बनाना ही होगा. आइए मिल कर आजादी की वर्षगांठ पर यह संकल्प लें.
।। नितेश त्रिपाठी ।।
(ई–मेल से)