कुछ दिन पहले मैंने एक बूढ़े आदमी को टिप्पणी करते सुना कि इससे अच्छा तो अंगरेजों का राज था. इस पर मुझे एक पुरानी फिल्म के गाने की कुछ पंक्तियां याद आ गयीं– ‘आनेवाली दुनिया में सबके सिर पर ताज होगा, न भूखों की भीड़ होगी, न दुखों का राज होगा, बदलेगा जमाना ये सितारों पे लिखा है..’ लेकिन आजादी के 66 साल बाद क्या जमाना सच में बदल पाया है? आज हमारे बुजुर्ग निराश हैं और युवा सशंकित और आक्रोशित हैं.
समय के साथ तमाम राजनैतिक दलों ने वंशवाद और राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा ही दिया है. भ्रष्टाचार अपनी तमाम सीमाएं लांघ चुका है. महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है. ऐसा लगता है कि इस रात की कभी सुबह नहीं होने वाली.
ऐसे निराशा के माहौल में भी अन्ना हजारे और दुर्गाशक्ति नागपाल जैसे अनेक लोग हैं, जो आशा की किरण दिखते हैं. जिस तरह उंगलियों से मिल कर मुट्ठी बनती है, अगर सारे भारतवासी एक हो जायें, तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हम अपनी सारी समस्याओं से मुक्ति पा लेंगे. और तब होगा सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा!
।। पल्लवी राज।।
(कदमा, जमशेदपुर)