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थिनलस चोरोल ट्रैकिंग एक जोखिम भरा शौक है. जाहिर है ट्रैकिंग के शौकीनों को कुशल गाइड की जरूरत होती है. ऐसा गाइड, जो उस क्षेत्र के बारे में बारीकी से जानता हो. अब तक इस क्षेत्र में पुरुष गाइड का ही दबदबा रहा है. ऐसे में जब यह पता चले कि ट्रैंकिग गाइड एक महिला […]

थिनलस चोरोल

ट्रैकिंग एक जोखिम भरा शौक है. जाहिर है ट्रैकिंग के शौकीनों को कुशल गाइड की जरूरत होती है. ऐसा गाइड, जो उस क्षेत्र के बारे में बारीकी से जानता हो. अब तक इस क्षेत्र में पुरुष गाइड का ही दबदबा रहा है. ऐसे में जब यह पता चले कि ट्रैंकिग गाइड एक महिला है, तो यकीन करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन लेह-लद्दाख की ‘लद्दाखी वुमन्स ट्रेवल कंपनी’ में आपको महिला ट्रैकिंग गाइड ही मिलेंगी. दरअसल, इसमें काम करनेवाली सभी महिलाएं ही हैं और इसे साकार किया है थिनलस चोरोल ने. 32 वर्षीय थिनसल ने 2009 में इस ट्रेवल कंपनी की शुरुआत की और तबसे लगातार स्थानीय महिलाओं को भी इस क्षेत्र में आगे बढ.ने के लिए प्रोत्सहित कर रही हैं.

थिनलस चोरोल उन महिलाओं के चेहरे पर भी मुस्कान बढ.ाती हैं, जो ट्रैकिंग का शौक रखती हैं लेकिन पुरुष गाइड के साथ जाने को लेकर सशंकित रहती हैं. लद्दाख में हर साल बडे. पैमाने पर विदेशी पर्यटक खासतौर पर ट्रैकिंग के लिए आते हैं और इनमें महिलाओं की संख्या भी अच्छा खासी होती है. ऐसे में थिनसल और उनकी ट्रेवल कंपनी इन ट्रैकर्स के लिए एक बेहतर माध्यम साबित होती है.

लद्दाख के ताकमाचिक इलाके में जन्मी थिनलस ने बहुत छोटी सी उम्र से पहाडों को नजदीक से देखा है. उन्होंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया. पिता ने उनकी परवरिश की. वह पिता के साथ ही बचपन से पहाडों पर भेड. चराने जाने लगी थीं. इस तरह उन्होंने पहाड. के दुरूह रास्तों को सहजता से पार करना सीख लिया था. धीरे-धीरे उन्हें यह एहसास भी होने लगा कि पहाडों पर चढ.ना उनकी खुशी को बढाता है. एक बार उन्हें बाहर से आये ट्रैकर्स के साथ जाने का मौका मिला. इस तरह ट्रैंकिग-टूरिज्म से जुड.ने का ख्याल उनके मन में आया.

इसमें खुद को और बेहतर बनाने के लिए उन्होंने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनिंग, उत्तरकाशी और नेशनल आउटडोर लीडरशिप स्कूल से प्रशिक्षण भी लिया. शुरुआत फ्रीलांस गाइड के तौर पर करने के बाद थिनलस ने ट्रैवल कंपनी शुरू की और अन्य स्थानीय महिलाओं को भी इससे जोड.ने का फैसला किया. उनकी इस पहल से कई अन्य लड.कियों को रोजगार मिला है. थिनलस ने टूरिस्टों को टेंट में रखने की बजाय होमस्टे को प्राथकिता दी. इससे पर्यटक वहां की संस्कृति से भी परिचित हो रहे हैं और स्थानीय ग्रामीणों की आमदनी भी हो जाती है. थिनलस चोरोल को लद्दाख वुमेन्स राइटर अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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