सिलीगुड़ी: चुनाव से पहले यूपीए द्वारा तेलंगाना राज्य का गठन करना, केवल मात्र वोट बैंक की राजनीति है. इसके देखा-देखी ‘गोरखालैंड’, ‘कामातापुरी’ जैसे मांग भी उठने लगी है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारें दोषी हैं. दो साल पहले राज्य सरकार के साथ गोजमुमो ने गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनीस्ट्रेशन (जीटीए) समझौता किया, लेकिन इसका परिणाम सब देख रहे है. गोरखालैंड की मांग को लेकर पूरा पहाड़ जल रहा है. वास्तव में भूल जीटीए समझौता में है. समझौता के अनुसार जीटीए को सुविधा और क्षमता नहीं दी गयी. वामफ्रंट अलग राज्य का समर्थक नहीं है, लेकिन वह चाहता है कि पहाड़ पर स्वायत्त शासन हो.
यह कहना है पूर्व नगर विकास मंत्री अशोक नारायण भट्टाचार्य का. वह शुक्रवार को अनिल विश्वास भवन में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे. पूर्व नगर विकास मंत्री ने पत्रकारों को बताया कि 1886 में गोरखा पार्वत्य परिषद के गठन से पहाड़ पर 20 सालों तक शांति थी. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की झूठे आश्वसन ने पहाड़वासियों को ठगा है.
संविधान के धारा 31 के तहत ऐसे संवेदनशील मामलों में तुरंत सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए. लेकिन मुख्यमंत्री इसे लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है. गोरखालैंड के जगह छठी अनुसूची बेहतर है. माकपा इसके पक्ष में है. उन्होंने आगे बताया कि जीटीए समझौता में इस बिंदु पर भी संधि हुई थी कि पहाड़ पर जितने मर्डर केस हैं, राज्य सरकार उसे वापस लेगी. लेकिन अब वह धीरे-धीरे खोल रही है. मदन तमांग का केस पुन: चालू किया गया. हम चाहते हैं बंद को बंद किया जाए. संवाद के जरिये रास्ता निकाला जाए.