करपी (अरवल) : एक समय था जब पूजा या धार्मिक आयोजन में देहात की शान कहे जानेवाली कीर्तन मंडली आज के इस समय में खोजने से भी नहीं मिलती है. अब समय के साथ खत्म होता जा रही है. ये कीर्तन मंडली एक ओर जहां गांवों में आपसी भाईचारे एवं एकता का परिचारक हुआ करती थी. वहीं धर्म एवं धार्मिक ग्रंथों के प्रति लोगों में रुझान पैदा करने के लिए सहायक भी थी.
फैशन के बढ़ते आज के इस दौर में डीजे ध्वनि विस्तारक यंत्र के आगे यह कीर्तन मंडली बौना साबित होती जा रही है. एक दौर वह था जब गांव के बुद्धिजीवी एवं सामाजिक तबके के लोगों के द्वारा गांव के किसी भी घरों में धार्मिक आयोजन पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा मंडली के माध्यम में धार्मिक प्रसंगों की गीत–संगीत के माध्यम से चर्चाएं की जाती थीं लेकिन इस बदलते दौर में कीर्तन मंडली को दरकिनार कर डीजे की कर्कश ध्वनि में कीर्तन मंडली को दरकिनार कर डीजे की कर्कश ध्वनि के प्रति लोग आकर्षित होते जा रहे हैं.
लोगों का रुझान कीर्तन मंडली की ओर कमता जा रहा है. जानकारों का कहना है कि अब कीर्तन मंडली पूर्णत: व्यवस्था पर आधारित हो गया है. इस धंधे में जुड़े लोग अब नजराने की मांग पर ही आते हैं. वहीं आज से कुछ दिन पहले लोगों के द्वारा खुशी से कीर्तन मंडली को वाद्ययंत्र एवं अन्य वस्तुएं देकर सम्मानित करते थे. गांव में दशहरा पूजा हो होली हो या प्रतिमा स्थापित की गयी हो या चैता का समय हो.
कीर्तन मंडली द्वारा ढोलक एवं झाल से श्रोताओं को झूमने को मजबूर कर देते थे. परंतु अब इनकी उपस्थिति नहीं के बराबर होती है. धार्मिक आयोजनों पर ढूंढ़ने से भी कीर्तन मंडली का दर्शन भी नहीं हो पाता है. पूरे फागुन माह एवं चैत माह में देहाती गांवों में कीर्तन मंडली द्वारा ढोलक एवं झाल के सहारे श्रोताओं को गीत के लय पर झूमने पर मजबूर किया करता था. परंतु अब डीजे के द्विअर्थी गीतों की ही शोर सुनाई देती है.