‘यह गंभीर अपराध है, इसकी जांच कड़ाई से होनी चाहिए’- यह मेडिक्लेम घेटाले पर श्रम आयुक्त, झारखंड सरकार की टिप्पणी है. इसमें कुछ नया नहीं है. हम सभी ऐसे बयानों से परिचित हो चुके हैं. यह हर जवाबदेह व्यक्ति का तकिया कलाम है. जांच करनेवाली संस्थाएं, जांच कमेटियां और जांच नतीजे अब तो परीक्षा प्रश्नपत्रों में स्थान बनाने लगे हैं. एक भी जांच रिपोर्ट शायद ऐसी नहीं, जिससे किसी भी अपराध को खत्म करने में मदद मिली हो.
हाल यह है कि कोई योजना शुरू होते ही जांच की मांग उठने लगती है. विकास कार्यो से ज्यादा जांच कमेटियां बनी हैं. जांच जनता के हाथ में एक झुनझुना है, बजाते रहो. आम आदमी को उसका हक चाहिए. क्या ये जांचकर्ता वह जमीन वापस दे पायेंगे जो पैरों के नीचे से खिसकी है.
मौत के आगोश से मासूमों को वापस ला पायेंगे? गरीबों के मुंह से छीना निवाला लौटा पायेंगे? देश की सर्वोच्च जांच संस्था भी मान लेती है कि सीबीआइ तोता है. किसी की खुशी या गम से तोते का क्या लेना! हमारे देश में पहाड़ खोदने से चुहिया नहीं, घोटाले निकलते हैं. हमें जांच नहीं, अपना हक चाहिए.
।। एमके मिश्र ।।
(रांची)