शायद किसी ने इस बात का अंदाजा भी नहीं लगाया होगा कि नरेंद्र दामोदर मोदी के खिलाफ उनके विरोधियों में ईर्ष्या इस कदर उफान मारेगी कि वे मोदी को अमेरिका जाने से रोकने के लिए राष्ट्र के सम्मान की रेखा को भी लांघ जायेंगे.
देश के 60 से भी अधिक सांसदों द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा को पत्र लिख कर मोदी को वीजा नहीं जारी करने की मांग करना लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले ही उनकी हताशा को दिखाता है, जिसमें वे इतना डूब गये कि उन्होंने देश की छवि की भी परवाह नहीं की. जो भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र कहता है, उसके सांसदों द्वारा देश के अंदरूनी मामले को सात समुंदर पार पहुंचाना बड़ी अनुशासनहीनता है और उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई होनी चाहिए.
हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत देश के सभी नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गयी है, जो लोकतांत्रिक सीमा के दायरे में ही होना चाहिए. राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तो लगते ही रहते हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि हम अपनी स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली का तमाशा बना दें.
।। शैलेश कुमार ।।
(ई-मेल से)