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जमीन दोगे या जान ?

हजारीबाग के केरेडारी प्रखंड में एनटीपीसी का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर चली गोलियां न केवल क्रूरता का प्रतीक हैं, बल्कि इसमें गहरी साजिश की बू भी आती है. चतरा के कई क्षेत्रों में भी मगध-आम्रपाली कोल-परियोजना और ग्रामीणों के बीच लगातार टकराव की स्थिति बनती जा रही है. क्या ऐसे कांड से उन ग्रामीणों […]

हजारीबाग के केरेडारी प्रखंड में एनटीपीसी का विरोध कर रहे ग्रामीणों पर चली गोलियां न केवल क्रूरता का प्रतीक हैं, बल्कि इसमें गहरी साजिश की बू भी आती है. चतरा के कई क्षेत्रों में भी मगध-आम्रपाली कोल-परियोजना और ग्रामीणों के बीच लगातार टकराव की स्थिति बनती जा रही है.

क्या ऐसे कांड से उन ग्रामीणों को भी किसी तरह का संदेश देने की कोशिश की गयी है? कहा गया है कि विरोध लोकतंत्र को मजबूती देता है, लेकिन आज अपने हक के लिए विरोध करनेवालों को बंदूक का निशाना बनाया जा रहा है और राज्य सरकार की इसमें सिर्फ सांत्वना देनेवाले की भूमिका है.

इस घटना में उस ब्रिटिश राज की झलक मिलती है, जो विद्रोहियों को एकजुट होता देख कर अपना राज खतरे में पाकर जालियावाला बाग जैसे नरसंहार को अंजाम देता था. निदरेष केसर महतो की निर्मम हत्या एवं उसके पांच साथियों को जिंदगी कि जंग लड़ने पर मजबूर कर देना, यह सवाल खड़ा करता है कि जान की कीमत ज्यादा है या इस परियोजना की! बिना कारगर पुनर्वास नीति के जख्मों पर मरहम लगाना मुमकिन नहीं होगा.
।। आलोक रंजन ।।

(हजारीबाग)

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