* खास पत्र
।। एक पीड़ित अभिभावक ।।
(हजारीबाग)
हजारीबाग के एक नामी स्कूल में दसवीं कक्षा के बच्चों को लगातार मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है और ब्लैकमेल कर उनसे जबरन पैसा वसूली की जा रही है. सत्र की शुरुआत में दबाव बना कर उनसे स्कूल से ही महंगी किताब-कॉपी खरीदवायी गयी. जिन्होंने घर की आर्थिक वजहों से खरीदने में देरी की, उन्हें क्लास में बैठने से वंचित कर बाहर धूप में दिन-दिन भर बैठाया गया. बच्चों के साथ ऐसा सलूक सुन कर अभिभावकों को हर हाल में किताब लेने पर बाध्य होना पड़ा.
मगर इसके बाद भी बच्चों को चैन से पढ़ने नहीं दिया गया. स्कूल ने एक लिस्ट बनायी और कहा कि इन बच्चों ने किताब स्कूल से न लेकर कहीं और से ली है और उन्हें लगातार परेशान किया गया.
अब स्कूल ने फरमान सुनाया है कि जिन बच्चों के पास स्कूल से किताब खरीदने की रसीद नहीं है उन्हें 1033 रुपये का फाइन जमा करना पड़ेगा. उनके साथ अपराधियों जैसा बरताव किया जा रहा है, मगर बच्चे या अभिभावक इसका विरोध नहीं कर सकते क्योंकि फॉर्मेटिव के अंक स्कूल से ही मिलने हैं और इसी बात का स्कूल बार-बार फायदा उठाता है. जहां पढ़ाई, मार्गदर्शन की बात होनी चाहिए, वहां सिर्फ पैसे लूटे जा रहे हैं. स्कूल ने विद्यार्थियों को सिर्फ ग्राहक समझा है. पढ़ने की जगह बच्चों को यह चिंता सता रही है कि यह नयी बात घर पर कैसे बतायें!
बच्चे का भविष्य स्कूल तय करेगा इसलिए ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता. लेकिन मेरी हालत भी ऐसी नहीं है कि मैं रोज-रोज स्कूल को पैसे दूं. आपके अखबार ने जन-सरोकार के ढेरों मुद्दे उठाये और सरकार से मनवाये हैं. अब हम जैसे अभिभावकों की आपके इस अखबार से ही उम्मीदें बंधी हैं. ऐसी दादागीरी राज्य के लगभग सभी निजी स्कूल करते हैं.