मैं रोता हुआ पैदा हुआ था. लोग मुझे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन मैं तो ईश्वर को अपनी पीड़ा बतलाना चाह रहा था. मैं कहां आ गया, मेरे आसपास दरिंदे दिखायी पड़ रहे थे. धीरे–धीरे मैं चुप होता गया और फिर स्वीकारना पड़ा कि मुझे भी इनके साथ ही रहना है, ऐसा ही बनना है, सो मैं बन गया. आसपास जो हो रहा था देख कर लगता था, इनसान ऐसा नहीं कर सकता.
उत्तराखंड में आये विनाश ने जिंदगी को मौत बनाने की सारी हदें पार कर दी. मौसम विभाग ने लिख दिया, सबने पढ़ लिया, बरसात हो गयी और लोग बह गये. जो बच गये उन्हें भूख–प्यास लगी. ट्रकों सहायता सामग्री, खाद्य सामग्री चली, मगर पहुंच नहीं पायी. मुर्दे सड़ने लगे, उनके बदन पर लदा सोना अब किस काम का, जिसने चाहा नोच–नोच कर निकाला.
जिनको बचा लिया गया वे अब तक घर नहीं पहुंच पाये. हमारे पास संसाधन है, तकनीक, बल, बुद्घि सब है, सिर्फ मानवता नहीं है. गंगा की लहरें थमी नहीं कि छपरा में मौत के तांडव ने कई चिरागों को बुझा दिया. आखिर कौन है वह जो बीच दुपहरी में घुप्प अंधेरा कर गया?
।। एमके मिश्र ।।
(रांची)