जहां नारी का सम्मान है, वहीं देवताओं का वास है. बड़ी संख्या में महिलाएं किसी घटना–दुर्घटना में अपने पति को खोकर विधवा हो जाती हैं. लेकिन दुर्भाग्य से आज के इस बाजारवाद और उपभोगतावाद के घटिया, गिरते और गंदे माहौल में तो एक छोटी बच्ची से लेकर एक वृद्ध और विधवा महिला तक सुरक्षित ही नहीं है.
इस प्रदूषित वातावरण ने तो उसे मात्र उपभोग की वस्तु ही बना कर रख दिया है और वह शोषण और दुष्कर्म की इस कदर शिकार है कि देखकर दिल दहल जाता है. बेचारी विधवाओं की हालत तो और भी अधिक खराब, भयानक और दयनीय है. आज भी विधवा को समाज में वह सम्मान नहीं मिल पाता है, जो एक आम महिला को मिलता है.
आज साढ़े चार करोड़ विधवाओं में से सिर्फ आधा करोड़ को ही बड़ी मुश्किल से पेंशन मिलती है, बाकी की तो किसी को सुध ही नहीं. देश में कुछ ऐसे इलाके भी हैं जहां इन बेचारी मजबूर विधवाओं को अपशकुनी और डायन ही माना जाता है और इन्हें सफेद साड़ी में ही रहना होता है. इनके दु:खों का समाधान होना जरूरी तो है, पर इसकी फिक्र करेगा कौन?
।। वेद मामूरपुर।।
(नरेला, दिल्ली)