।। दक्षा वैदकर ।।
किसी राकेश ने फोन पर अपनी एक समस्या बतायी है. वे कहते हैं कि ऑफिस के अधिकतर लोग उनके बारे में गलत बातें करते हैं. कोई कहता है कि ‘यह तो बॉस का रिश्तेदार है इसलिए इसे नौकरी पर रखा गया है’, तो कोई कहता है कि ‘इसे काम-वाम कुछ नहीं आता. बस कुरसी तोड़ता रहता है.’ मैं सभी को समझाता हूं कि बॉस का और मेरा केवल उपनाम ही एक है. हम रिश्तेदार नहीं है. फिर भी लोग बातें बनाते रहते हैं कि यह अपनी नौकरी बचाने के लिए झूठ बोल रहा है. मैं लोगों का मुंह कैसे बंद करूं?
राकेश की तरह हम सभी कई तरह की बातों से परेशान रहते हैं. कोई अपने कॉलेज के दोस्तों से परेशान है, तो कोई रिश्तेदारों से. किसी की पत्नी उन्हें भला-बुरा कहती है, तो किसी का पति ऑफिस से घर आते ही उन पर चिल्लाने लगता है.
यहां मैं एक उदाहरण दूंगी. हम सभी के किचन में आलू, प्याज, लहसुन, मिर्ची, हल्दी, नमक, मसाला आदि चीजें होती हैं. फिर ऐसा क्यों होता है कि कोई इनसान इन्हीं सामग्रियों से बहुत स्वादिष्ट आलू की सब्जी बना लेता है, तो कोई दूसरा इनसान खाने लायक सब्जी भी नहीं बना पाता? वह इसलिए क्योंकि हमें यह पता नहीं होता कि किस सामग्री को सब्जी में डालना है? कितनी अनुपात में डालना है? और उसे कितनी देर पकाना है?
ऐसी ही हमारी जिंदगी भी होती है. हमारी तरफ कई प्रकार की चीजें आती हैं, जैसे क्रोध, नफरत, मुस्कुराहट, चिड़चिड़ापन, अपशब्द, प्यार, आत्मीयता. यह हम पर निर्भर करता है कि हम इनमें से कौन-कौन-सी चीज को चुनते हैं. हम इन चीजों से अच्छी खाने लायक चीज भी बना सकते हैं और ऐसी चीज भी बना सकते हैं, जो बाद में फेंकनी पड़े. जब कोई हमारे बारे में बुरा कहता है, तो ऐसी परिस्थिति में हमें खुद को मजबूत बनाना होगा.
यदि आप मरीज के पास जायेंगे और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होगी, तो आप भी बीमार पड़ जायेंगे. वहीं अगर आप भीतर से मजबूत होंगे, तो बीमार व्यक्ति के कीटाणु आप पर असर नहीं कर पायेंगे. बेहतर है कि आप खुद को भीतर से इतना मजबूत बना लें कि लोगों की बातें, यानी की कीटाणु आप पर असर न डालें.
– बात पते की
* हम पर चिल्लानेवाला, बुरा कहनेवाला व्यक्ति दरअसल बीमार इनसान होता है. ऐसे इनसान से नफरत न करें, उसकी बीमारी का इलाज तलाशें.
* सामनेवाला बुरी बातें इसलिए करता है, क्योंकि वह आपसे जलन करता है. इस जलन का इलाज उसे खुद करना होगा. आप बस खुद को संभालें.