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चुनाव सुधार की दिशा में मील का पत्थर

पिछले डेढ़ महीने में चुनाव सुधार व भारतीय राजनीति में शुचिता लाने के क्रम में न्यायपालिका तथा सूचना आयोग ने जो प्रमुख निर्णय दिये हैं, वस्तुत: ये वर्षो से दागदार हो रही राजनीतिक प्रणाली को बचाने की दिशा में बेहद गंभीर, साहसिक और स्वागतयोग्य कदम हैं. हमारे संविधान निर्माताओं ने शायद ही यह सोचा होगा […]

पिछले डेढ़ महीने में चुनाव सुधार व भारतीय राजनीति में शुचिता लाने के क्रम में न्यायपालिका तथा सूचना आयोग ने जो प्रमुख निर्णय दिये हैं, वस्तुत: ये वर्षो से दागदार हो रही राजनीतिक प्रणाली को बचाने की दिशा में बेहद गंभीर, साहसिक और स्वागतयोग्य कदम हैं. हमारे संविधान निर्माताओं ने शायद ही यह सोचा होगा कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर अपराधीकरण इतना हावी होगा.

हाल ही में आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, जो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों व विधायकों को अयोग्य घोषित करने से तथा जेल में रह कर चुनाव लड़ने पर रोक आदि से संबंधित हैं, से निश्चित रूप से राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगेगा.

पुन: सूचना आयोग द्वारा राजनीतिक दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने का निर्णय एवं इलाहाबाद हाइकोर्ट के लखनऊ बेंच द्वारा जातिगत रैलियों पर प्रतिबंध लगाने संबंधी निर्णयों ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को झकझोर दिया है. दूसरी ओर, चुनाव सुधार को अधिक कारगर बनाने के लिए जनता को इसका प्रत्यक्ष भागीदार बनाया जाना चाहिए.

।। पंकज पियूष ।।

(मधुपुर, देवघर)

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