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ऊंचे पहाड़ों पर अटकी हुई थीं सांसें..

कोलकाता: मैं कभी किसी को सलाह नहीं दूंगा कि गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ या बद्रीनाथ की यात्र पर जाये. मैं खुद या मेरा परिवार तो कभी वहां दुबारा जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. जिसको अपना जीवन प्यारा न हो, वह इंसान ही वहां जाये. हमारे प्राण बच गये, ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद है. […]

कोलकाता: मैं कभी किसी को सलाह नहीं दूंगा कि गंगोत्री, जमनोत्री, केदारनाथ या बद्रीनाथ की यात्र पर जाये. मैं खुद या मेरा परिवार तो कभी वहां दुबारा जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. जिसको अपना जीवन प्यारा न हो, वह इंसान ही वहां जाये.

हमारे प्राण बच गये, ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद है. बच्चों सहित मेरा पूरा परिवार सलामत है. पहाड़ों के रास्ते उस वीभत्स यात्र के अनुभव याद कर के गायत्री प्रसाद शुक्ला की आंखें भर आती हैं. उत्तराखंड त्रसदी से बच कर आये 80़/2 पाथुरिया घाट स्ट्रीट निवासी गायत्री प्रसाद शुक्ला (54) बताते हैं कि हरिद्वार से उन्हें जमनोत्री जाना था. वहां रहने के बाद वे गंगोत्री के लिए रवाना हुए. 15 जून को गंगोत्री दर्शन कर के 50 किमी दूर आ गये थे. यहां देर रात में ही आंधी-तूफान शुरू हो गया था.

लाटा शेरा में तीन तल्ला के एक आश्रम में गये, लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली. फिर अपनी गाड़ी से दो किलोमीटर आगे जाने पर एक रिसोर्ट में जगह मिली. ऐसी बारिश व आंधी आयी कि रास्ते गायब हो गये. सुबह जब रास्ता देखने आये, तो वहां से वह आश्रम ही गायब था, जहां से उन्हें रात को भगा दिया गया था. वह पानी में डूब चुका था. पता नहीं कितने लोग डूब चुके थे. जहां ठहरे थे, वह जगह भी खाली करायी गयी.

उन्हें उत्तर काशी की ओर 25 किलोमीटर जाना था, लेकिन रास्तों का कोई अता-पता नहीं था. गंगा में जल की धारा व मिट्टी का प्रवाह इतना तेज था कि गंगा से तेज आवाजें आ रही थीं. जिसे सुन कर मन काफी घबरा गया था. केदारनाथ में गंगाजी में डुबकी तो दूर, चार लोटे जल डालने से ही माथा जैसे शून्य हो गया.

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