पटना: इन बूढ़ी आंखों ने कई बदलाव देखे हैं. एक समय था, जब गंगा यहां से एक किमी दूर बहा करती थी. किनारे में बस इतना ही पानी होता था कि हम पैदल पार कर जाते थे. लेकिन, 1975 के बाद गंगा दक्षिण की ओर खिसकनी शुरू हुई और देखते- देखते पांच ईंट-भट्ठे व दो घर उसमें समा गये. यह कहना है नासरीगंज के देवी स्थान रोड के रहनेवाले 90 वर्षीय वृद्ध देव नारायण का.
100 सालों में लौटती है धारा
श्री नारायण ने कहा कि करीब 150 साल पहले भी गंगा किनारे से बहती थी, लेकिन फिर धीरे-धीरे उत्तर की ओर चली गयी. जब 80-90 साल पूरे हुए, तो वह फिर से अपने पुराने स्थान पर लौटने लगी. इसका प्रमाण है, सामने बनी सीढ़ी. इस सीढ़ी का दो-तीन साल पहले पता चला, जब गंगा कटाव करते हुए काफी किनारे तक पहुंच गयी. तीन साल पहले तो गंगा की धार इतनी तेजी से दक्षिण की ओर बढ़ने लगी कि सुरक्षा बांध भी नीचे से फट गया.
मौत को गले लगाने जैसा
अखिल भारतीय बाढ़, सुखाड़ एवं कटाव पीड़ित संघर्ष मोरचा के अध्यक्ष राम भजन सिंह यादव ने कहा कि 1980 तक गंगा की मुख्य धारा कुर्जी से होकर बहती थी. तब गंगा उत्तरायन होकर बहती थी. 80 के बाद इसकी धारा दक्षिणायन हो गयी. इस कारण यह धीरे-धीरे उत्तर की ओर खिसकने लगी और इसका फायदा उठा कर लोगों ने गंगा की जमीन पर बड़े-बड़े अपार्टमेंट बना लिये. इन इमारतों में रहना मौत को गले लगाने जैसा है. कब गंगा लौट आयेगी, यह कहना मुश्किल है.
दियारा इलाके में 80-10 फुट नीचे तक गंगा की धारा कटाव करती है और देखते-देखते जमीन बैठ जाती है. अगर गंगा दक्षिण की ओर भी भीतर-भीतर कटाव शुरू कर दे, तो लोगों की जिंदगी कैसे खत्म हो जायेगी, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. गंगा के कटाव पर अब तक काफी काम हुआ है. अनुभव यही बताता है कि गंगा के किनारे इमारतें खड़ी करना मौत को आमंत्रण देना है.