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गांधी के गांव में कॉरपोरेट के कदम

गांवों में बाजार के आने का प्रभाव केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नहीं पडेगा, बल्कि वह दूसरी चीजों को भी प्रभावित करेगा. यह तो तय है कि हमारे गांव बाजार का स्वागत करने के लिए तैयार हैं. गांवों की तसवीर और गांव के लोगों के विचारों में बदलाव आया है. इस बदलाव में बाजार विस्तार के […]

गांवों में बाजार के आने का प्रभाव केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर नहीं पडेगा, बल्कि वह दूसरी चीजों को भी प्रभावित करेगा. यह तो तय है कि हमारे गांव बाजार का स्वागत करने के लिए तैयार हैं. गांवों की तसवीर और गांव के लोगों के विचारों में बदलाव आया है. इस बदलाव में बाजार विस्तार के लिए पूरा-पूरा अवसर है.

दूसरी ओर जो कंपनियां यहां आ रही हैं, वह इस बात के लिए तैयार हैं कि केवल अपने उत्पादों को बेच कर गांव का पैसा निकालने की कोशिश कारगर नहीं होगी. उन्हें गांव के बाजार में टिके रहने के लिए स्थानीय लोगों के लिए अवसर जुटाने होंगे. लिहाजा करीब-करीब सभी कंपनियां गांवों को लेकर अपनी सोच बदल रही हैं और अपने प्लान में स्थानीय लोगों के लिए अवसर जुटाने में लगी हैं. इसके कई आयाम हैं. महात्मा गांधी ने भारत के गांवों और वहां के लोगों की दीन-हीन दशा, शहरवासियों द्वारा उनका शोषण और उनके प्रति लोगों की सोच को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी और चुनौतीपूर्ण सवाल ख.डे किये थे. उन सवालों का जवाब इस नयी परिस्थिति में हम ढूंढ पायेंगे? हम यहां इस पर बात कर रहे हैं :

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