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किस्सा इस्तीफा व उसकी वापसी का

आडवाणी के इस्तीफे की पृष्ठभूमि एक ही दिन में तैयार नहीं हुई. लंबे समय से अध्यक्ष की अनदेखी से खफा इस बुजुर्ग नेता को पार्टी में अपनी स्थिति का एहसास था. लेकिन आरएसएस प्रमुख की इच्छाओं के समक्ष जिस तरह से उन्होंने अपनी हठ छोड़ी, इससे तो साबित हो गया कि वो अभी भी संगठन […]

आडवाणी के इस्तीफे की पृष्ठभूमि एक ही दिन में तैयार नहीं हुई. लंबे समय से अध्यक्ष की अनदेखी से खफा इस बुजुर्ग नेता को पार्टी में अपनी स्थिति का एहसास था. लेकिन आरएसएस प्रमुख की इच्छाओं के समक्ष जिस तरह से उन्होंने अपनी हठ छोड़ी, इससे तो साबित हो गया कि वो अभी भी संगठन के आदमी हैं.

गोवा में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से कुछ दिनों पहले, भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी के बीच दिल्ली में आडवाणी के आवास पर हुई बैठक काफी तनावपूर्ण रही थी. जब राजनाथ ने पार्टी में नंबर एक पद पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के लिए सहमति मांगी, तो पार्टी के इस बुजुर्ग नेता ने राजनाथ को अपने उस प्रस्ताव की याद दिलायी, जिसमें नितिन गडकरी को राज्यों के चुनावों की निगरानी के लिए बनी प्रबंधन समिति का प्रमुख बनाने को कहा गया था.

राजनाथ अलग-अलग बहाने बना कर पिछले दो महीनों से आडवाणी को टरकाने की कोशिश कर रहे थे. माना जाता है, आडवाणी की मांग को पूरा न करने के लिए वे बार-बार आरएसएस के बहाने का इस्तेमाल कर रहे थे.

भीतरी लोग बताते हैं कि आरएसएस के सिपहसालार सुरेश सोनी और उनके करीबी विश्वासी अरुण जेटली की तरफ से यह दबाव था कि आडवाणी की इच्छाओं का सम्मान न किया जाये. आडवाणी की चाल को मोदी के राजतिलक के रास्ते में रोड़े के रूप में देखा गया.

मोदी के लिए जिस चतुराई और धूमधाम से रास्ता तैयार किया जा रहा था, उस योजना और छल-कपट को आडवाणी साफ समझ रहे थे. छह जून को उनका पेट खराब हो गया. वह जिस मनोवैज्ञानिक दबाव से गुजर रहे थे, इसे उसका शारीरिक नतीजा समझा गया. सात जून को उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पूर्व संध्या पर आयोजित पदाधिकारियों की बैठक में शामिल होना था.

इस बैठक में कार्यकारिणी के लिए एजेंडा तय किया जाना था. आडवाणी को वहां से यह संदेश मिला कि एजेंडा सिर्फ मोदी की ताजपोशी पर केंद्रित है और उसमें केंद्रीय चुनाव प्रबंधन कमेटी के बारे में उनके प्रस्ताव का जिक्र तक नहीं है. आडवाणी ने स्वास्थ्य के आधार पर गोवा की उड़ान न पकड़ने का फैसला किया.

लेकिन अगले दिन यानी आठ जून को उनका जाना निश्चित था. इसके लिए चार्टर्ड विमान तैयार रखा गया था. लेकिन, सात जून को पदाधिकारियों की बैठक के बाद जल्द ही यह साफ हो गया कि पार्टी के अग्रणी नेताओं ने आडवाणी की गैरहाजिरी की अनदेखी करने का मन बना लिया है.

देर शाम, इस बुजुर्ग नेता ने कार्यकारिणी के पहले दिन गोवा नहीं जाने का निर्णय किया. हालांकि, आडवाणी को इस बात का पुख्ता फीडबैक मिल गया था कि आरएसएस के सिपहसालार सुरेश सोनी, राजनाथ और जेटली के साथ एकजुट होकर मोदी के राजतिलक को इकलौते एजेंडे के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं.

लेकिन, जो बात आडवाणी के जख्मों पर नमक रगड़नेवाली जान पड़ी, वह सोनी का यह एलान कि मोदी के राजतिलक को आरएसएस का आशीर्वाद मिलेगा. हालांकि, कुछ दिनों पहले आरएसएस के महामंत्री भैयाजी जोशी किसी एलान से पहले एकराय बनाने के लिए राजनाथ से कह चुके थे. भाजपा अध्यक्ष ने इस मुद्दे पर जोशी की सलाह की अनदेखी कर सोनी के साथ खड़ा होने का फैसला किया.

शाम को, आडवाणी ने कार्यकारिणी की पूरी बैठक में ही न जाने का निर्णय लिया. नौ जून को सुबह करीब 11 बजे, राजनाथ ने वेंकैया नायडू से कहा कि वह आडवाणी को मोदी की ताजपोशी के बारे में जानकारी दे दें, जिसकी वह घोषणा करने जा रहे हैं. बातचीत बिल्कुल रूखी और संक्षिप्त थी.

बताया जाता है कि बुजुर्ग नेता ने अपनी अप्रसन्नता ‘मुङो दुख है’ कह कर जाहिर की. उनका क्षोभ इस बात से बढ़ गया कि बैठक में उनकी पूरी तरह उपेक्षा की गयी. राजनाथ आगे बढ़े और उन्होंने प्रचार समिति के अध्यक्ष पद पर मोदी की ताजपोशी का एलान कर दिया. आडवाणी के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए मोदी, जेटली और राजनाथ मंच पर साथ नजर आये.

नौ जून की रात को आडवाणी ने चुपचाप इस्तीफा पत्र तैयार किया और बहुत सावधानी से सोच-विचार कर इसे अगली सुबह अपने एक सहयोगी से राजनाथ को भिजवा दिया. राजनाथ पुराने सिपाही का गुस्सा शांत करने के लिए फौरन आडवाणी के घर पहुंचे, लेकिन वह बहुत रूखे नजर आये.

आडवाणी ने यह पत्र मीडिया को जारी कर दिया, जो मोदी के राजतिलक के 24 घंटे के अंदर पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका था. आडवाणी ने बागी की तरह नहीं, बल्कि क्रोधित बुजुर्ग की तरह व्यवहार करना चुना.

बताया जाता है कि इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाने आने पर आडवाणी ने जेटली और सुरेश सोनी की मौजूदगी तक की अनदेखी कर दी. शाम को, भाजपा संसदीय बोर्ड ने सर्वसम्मति से आडवाणी का इस्तीफा खारिज कर दिया.

11 जून को नितिन गडकरी और एस गुरुमूर्ति ने मध्यस्थ की भूमिका निभायी. आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत ने इस्तीफा वापस लेने के लिए आडवाणी से बात की. हालांकि, आडवाणी ने आरएसएस को यह एहसास करा दिया कि जिस तरह से आरएसएस के सिपहसालार अपने निकट सहयोगियों के साथ पार्टी के छोटे-छोटे मामले देख रहे हैं और पार्टी चला रहे हैं, उससे वह खुश नहीं हैं. भागवत ने आडवाणी की चिंताओं को स्वीकार किया, लेकिन उनसे इस्तीफा वापस लेने को कहा.

विडबंना है कि जो आडवाणी भाजपा में आरएसएस की दखलअंदाजी की शिकायत करते हैं, उसी आडवाणी ने खुद को मनाने के लिए आरएसएस प्रमुख को अनुमति दी. एक स्वयंसेवक होने के नाते, आडवाणी संघ की इस संस्कृति को अच्छी तरह समझते हैं कि आरएसएस प्रमुख को चुनौती देने का मतलब है अपने संगठन और सिद्धांत का पूर्ण परित्याग. और आरएसएस प्रमुख की इच्छाओं के सामने झुक कर उन्होंने यह साबित कर दिया वह अभी भी संगठन के आदमी हैं.
।। अजय सिंह ।।
संपादक, गवर्नेस नाउ

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