रांची: झारखंड का प्रथम मसीही कौन के सवाल पर दो प्रमुख चर्च आमने-सामने हैं. छोटानागपुर में स्थापित पहले चर्च (जीइएल चर्च छोटानागपुर व असम) के अनुसार यहां पहला बपतिस्मा 25 जून 1846 को मारथा नाम की बालिका का हुआ और वही पहली मसीही है. चर्च की शुरुआत भी उसी दिन हुई. उधर, एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के अनुसार गोस्सनर कलीसिया का स्थापना दिवस नौ जून 1850 है, क्योंकि उस दिन छोटानागपुर के चार मूल निवासी, हेथाकोटा के नवीन डोमन, चिताकुनी के केशो व बंधु और करंदा के घूरन उरांव ने बपतिस्मा लिया था.
मालूम हो कि बपतिस्मा संस्कार मसीही बनने की प्रक्रिया है. रोचक तथ्य यह है कि मारथा, नवीन डोमन, केशो, बंधु और घूरन उरांव का बपतिस्मा छोटानागपुर पहुंचे चार प्रथम गोस्सनर मिशनरियों में से एक रेव्ह एमिल शात्ज ने ही कराया. गोस्सनर मिशनरियों का छोटानागपुर आगमन दो नवंबर 1845 को हुआ था. जीइएल व एनडब्ल्यूजीइएल चर्च दोनों के मुख्यालय रांची में हैं. देश भर में जीइएल चर्च की 1896 व एनडब्ल्यूजीइएल चर्च की 735 शाखाएं (चर्च) हैं.
स्थानीय होना जरूरी
एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के पूर्व बिशप निदरेष लकड़ा ने हाल ही में चर्च के मुख्यपत्र ‘नवीन बंधु’ में एक लेख लिखा है. इसमें कहा कि कुछ लोग झारखंड की कलीसियाई इतिहास में प्रथम बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति नवीन डोमन का नाम व प्रथम बपतिस्मा की तिथि नौ जून 1850 को धूमिल करने का प्रयास कर रहे हैं और इसके बदले अनाथ मारथा का नाम प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है, जो चिंता का विषय है. एनडब्ल्यूजीइएल चर्च के अनुसार अनाथ बच्चों के बपतिस्मा को कलीसिया की शुरुआत नहीं कह सकते, क्योंकि उन अबोध बच्चों की कोई पहचान नहीं थी और उन्हें यीशु की शिक्षाओं के बारे में कोई ज्ञान भी नहीं था. यदि मिशनरी लौट जाते, तो अनाथ बच्चों का वह चर्च बिखर जाता.
पहला नाम मारथा का
उधर, जीइएल चर्च नॉर्थ वेस्ट डायसिस के बिशप अमृत जय एक्का ने कहा है कि बपतिस्मा रजिस्टर के अनुसार पहला बपतिस्मा मारथा का हुआ. तकनीकी रूप से छोटानागपुर की भूमि पर मसीही बननेवाली प्रथम व्यक्ति वही है. उसी रजिस्टर में बाद में नवीन डोमन व अन्य के नाम भी हैं.
मारथा की कब्र जीइएल कब्रिस्तान में है. बपतिस्मा लेने के बाद मारथा या अन्य लोगों का क्या होता, इसकी अनगिनत संभावनाएं हो सकती हैं. जीइएल चर्च ने नवीन डोमन व अन्य लोगों को भी समुचित महत्व दिया है.