रांची: कभी हिल स्टेशन मानी जानेवाली रांची की हालत अब प्रदूषण की चपेट में आकर लगातार बिगड़ती जा रही है. जंगलों से परिपूर्ण राज्य झारखंड की राजधानी की प्रकृति किसी हिल स्टेशन से कम नहीं आंकी जाती थी, लेकिन अब यहां भी प्रदूषण की मात्र दिनोदिन बढ़ती ही जा रही है. शहर की सड़कों पर बेतहाशा बढ़ती वाहनों की संख्या से न केवल प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि शहरी जीवन भी कठिन होता जा रहा है.
जल प्रदूषण
बीआइटी मेसरा के विद्यार्थियों की एक शोध रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ था कि राज्य की सबसे महत्वपूर्ण नदी स्वर्णरेखा में विभिन्न रसायनों की मात्र मानक स्तर से अधिक है.
हटिया डैम से पहले नदी में मरकरी, कीटनाशक व लोहा, टाटीसिलवे में कीटनाशक, लोहा व मरकरी, हिनू नदी व स्वर्णरेखा के संगम से पहले कम ऑक्सीजन व अत्यधिक आयरन, बड़ा घाघरा के पास हिनू नदी में अधिक आयरन व मरकरी तथा स्वर्णरेखा के संगम स्थल से पहले हरमू नदी में अधिक आयरन, अत्यधिक मरकरी व सोडियम सहित ऑक्सीजन की मात्र काफी कम पायी गयी थी. हरमू व जुमार सहित शहर में बहने वाली छोटी नदियों की हालत नालों की तरह हो गयी है.
वायु व ध्वनि प्रदूषण
वर्ष 2008 के बाद से राजधानी के विभिन्न चौराहों पर ध्वनि प्रदूषण तय मानक से अधिक पाया गया है. राजधानी की सड़कों पर तेजी से बढ़ते वाहन इसका प्रमुख कारण है. वहीं विभिन्न पर्व-त्योहार व शादी के मौकों पर आतिशबाजी से ध्वनि तीव्रता बेहद बढ़ जाती है. लोग वाहनों पर लाउडस्पीकर लगा कर घूमते हैं. ताजा आंकड़ों के अनुसार शहर के विभिन्न इलाकों में ध्वनि का न्यूनतम व अधिकतम स्तर 72.5 से 96.5 डेसिबल है, जबकि इसकी तय सीमा क्रमश: 50.0 व 65.0 डेसिबल है. इन वाहनों के धुएं से वायु प्रदूषण हो रहा है. रांची में तीन लाख से अधिक वाहन हैं.