-1984 दंगा-
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जगदीश टाइटलर की याचिका पर सुनवाई से आज खुद को अलग कर लिया.
टाइटलर ने निचली अदालत के उस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस के इस नेता की भूमिका की और जांच करने करने का निर्देश दिया था. न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने कोई कारण बताये बगैर ही खुद को इस याचिका पर सुनवाई से अलग कर लिया. उन्होने कहा, ‘‘ मैं किसी भी हालत में इस मामले की सुनवाई नहीं करुंगा. इस मामले को तीन जुलाई को किसी अन्य खंडपीठ के सामने रखें.’’
टाइटलर ने 29 साल पुराने सिख विरोधी दंगों के मामले में उनके खिलाफ जांच को फिर से खोलने के निचली अदालत के आदेश को कल दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. निचली अदालत ने टाइटलर को क्लीन चिट देने और उनके खिलाफ मामला बंद करने की सीबीआई की रिपोर्ट खारिज कर दी थी. निचली अदालत ने जांच एजेंसी को प्रत्यक्षदर्शियों और दंगों के बारे में जानकारी का दावा करने वाले लोगों से पूछताछ करने का आदेश दिया था.
टाइटलर ने निचली अदालत का फैसला रद्द करने का अनुरोध करते हुये याचिका में कहा, ‘‘निचली अदालत का आदेश सीआरपीसी (अपराध प्रक्रिया संहिता) की योजना के विपरीत है. जांच एजेंसी की जांच पद्धति और तरीका पूरी तरह से उसका विशेषाधिकार होता है. अदालत एजेंसी को यह निर्देश नहीं दे सकती कि किस गवाह से जिरह की जाये.’’ टाइटलर ने कहा, ‘‘कानून की यह प्रतिपादित व्यवस्था है कि जांच का निर्देश तभी दिया जा सकता है जब प्रथम दृष्ट्या किसी अपराध का होना पाया जाता है अथवा किसी व्यक्ति की संलिप्तता प्रथम दृष्ट्या स्थापित हो जाती है लेकिन किसी व्यक्ति ने अपराध किया है या नहीं, इस बात की जांच का निर्देश कानूनी तौर पर नहीं दिया जा सकता.’’
दरअसल टाइटलर को क्लीन चिट देने एवं मामले को बंद करने की सीबीआई की रिपोर्ट के खिलाफ दंगा पीड़ितों ने याचिका दायर की थी जिसकी सुनवाई के दौरान सुनवाई अदालत ने यह आदेश दिया. याचिकाकर्ता लखविन्दर कौर की ओर से वरिष्ठ वकील एच एस फुल्का ने कहा था कि ऐसी सामग्री है जिसकी एजेंसी ने अनदेखी की. इसके अलावा सुनवाई अदालत के समक्ष टाइटलर के खिलाफ सबूत भी थे. हालांकि सीबीआई ने पीड़ितों के अनुरोध को खारिज करने की मांग करते हुए कहा था कि जांच में यह बात स्पष्ट हो गयी है कि टाइटलर उत्तरी दिल्ली के गुरुद्वारा पुलबंगश में एक नवंबर 1984 को उस समय मौजूद नहीं थे जब दंगों में तीन लोग मारे गये थे. सिख विरोधी दंगे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के थे.