।।दक्षा वैदकर।।
समस्याएं कहां और किसके पास नहीं होती? समस्याएं हर व्यक्ति की जिंदगी का हिस्सा होती हैं. ये घर, ऑफिस हर जगह हो सकती हैं. किसी भी रिश्ते में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. हर कोई उस समस्या का हल निकालने के लिए जूझता रहता है. लड़की के लिए यदि रिश्ते नहीं आते हैं, तो वह अपनी सुंदरता पर और ध्यान देती है, स्टूडेंट को यदि किसी विषय में कम अंक आते हैं, तो वह उस विषय की ट्यूशन लगा लेता है, यदि किसी कंपनी का कोई प्रोडक्ट ज्यादा नहीं बिकता, तो वह कंपनी अपने प्रोडक्ट की पैकेजिंग बदल देती है, उसके गुणों में बदलाव कर देती है, उसकी मार्केटिंग पर फोकस करती है. कुल मिला कर जिस तरह की समस्या होती है, उस तरह का हल होता है. हमें पता लगाना जरूरी है कि आखिर समस्या क्या है, उसकी जड़ क्या है?
एक सिटी बस का कंडक्टर दुबला-पतला-सा था. एक दिन साढ़े छह फुट ऊंचा हट्टा-कट्टा जवान बस में आकर बैठा. कंडक्टर ने उससे टिकट लेने को कहा, तो वह बोला, ‘राजू दादा बस का टिकट नहीं लेता.’ कंडक्टर डर कर आगे चला गया. ऐसा वह दादा रोज कहता. कंडक्टर को कुंठा होने लगी. वह भी शरीर बनाने अखाड़े जाने लगा. तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद उसका शरीर मजबूत हुआ. उसमें हिम्मत भी आ गयी. अब वह पहलवान दादा का सामना करने को तैयार था.
अपने दिन-रात का चैन वापस लौटाने के लिए एक दिन वह अपने तीन पहलवान साथियों के साथ बस में उस दादा का इंतजार कर रहा था. जैसे ही वह दादा बस में बैठा और बोला कि राजू दादा बस का टिकट नहीं लेता. कंडक्टर अपने साथियों के साथ उसके सामने जा खड़ा हुआ. सीना फुला कर उसने पूछा, क्यों टिकट नहीं लेता? वह दादा अपनी जेब से एक कागज निकालते हुये बोला, क्योंकि वह हमेशा मंथली पास बनवा लेता है. कंडक्टर भौंचक रह गया. दिन का चैन, रातों की नींद उड़ाना, अखाड़े जाना, अपने दोस्तों को पटा कर लाना, सभी बातें समस्या की तह तक न जाने से बेमतलब थीं.
यह किस्सा हमें सिखाता है कि पहले बीमारी की वजह पता लगाएं, उसके बाद बीमारी के अनुसार ही दवाइयां खाएं, इलाज करवाएं.
बात पते कीः
-समझदार इनसान वही है, जो मामले की तह तक जाये. आप भी इस तकनीक को अपनायें. बिना कारण जानें, समस्या को हल करने की कोशिश न करें.
-किसी भी बात को लेकर खुद से अंदाजा लगाना बंद करें. पहले सामनेवाले को जानें और समस्या को समङों. वरना आपकी सारी मेहनत बेकार जायेगी.