जमशेदपुर: सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन/तुलसी भवन में रविवार को सुमित्रनंदन पंत जयंती समारोह सह कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया. प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रनंदन पंत के चित्र पर माल्यार्पण के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, जिसके बाद उपस्थित साहित्यकारों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये. सरोज कुमार सिंह ‘मधुप’ ने कहा कि पंत जी की कविताओं में छायावाद, रहस्यवाद और अध्यात्म वाद की अंतर्धारा प्रवाहित है.
आयोजन की अध्यक्ष डॉ त्रिपुरा झा ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में रचना धर्म की उपादेयता रेखांकित करते हुए हिंदी साहित्य की विशिष्टता कायम रखने की आवश्यकता पर बल दिया. कार्यक्रम के दूसरे चरण में उदय प्रताप ‘हयात’ के संचालन में कवि गोष्ठी आयोजित हुई जिसमें साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं सुनाईं. शैलेंद्र पांडेय ‘शैल’ की रचना ‘कुछ दिन से हादसों का असर देख रहा हूं/इस शम्त है मौसम की नजर देख रहा हूं..।’ को उपस्थित साहित्यकारों की वाहवाही मिली तो अरुण कुमार पांडेय ‘अरुणोंदु’ की गजल ‘चरागों पे झपटती है तो शोलों से लिपटती है..’ को भी कवियों की खूब दाद मिली. इसी तरह श्रीराम पांडेय ‘भार्गव’ की कविता ‘मैं गमले का फूल नहीं हूं..’ की वैचारिक सुदृढ़ता ने लोगों की आस्था को सहलाया तो कल्याणी कबीर की ‘मेरे हिस्से की रोटी मुङो दे दो, मुहब्बत तुम रख लो..’ के सीधे संवाद की प्रवाहमान शैली सुकून का अहसास कराया.
सरोज कुमार सिंह मधुप के सबल मुक्तक ने कविता को गद्य का रूप देने में लगे लोगों को मुक्त छंद की क्षमता का अहसास करा गया. ममता सिंह के शेरों ने लोगों की कोमल भावनाओं को सहलाया तो अध्यक्ष डॉ त्रिपुरा झा की महात्मा गांधी पर कविता आस्था का दीप जलाती लगी. इसके अलावा कृष्णानंद पांडेय ‘कृष्णशैव’, यमुना तिवारी व्यथित, भंजदेन देवेंद्र कुमार व्यथित, अरुण अलबेला, अमित रंजन पांडेय, मदन अनजान, सुरेश मिश्र सुरेश आदि ने भी अपनी रचनाएं सुनायीं.