रांची: चर्च की वैवाहिक रस्मों में अब बदलाव नजर आने लगे हैं. पर फिलहाल यह बड़े शहरों तक सीमित है. कॉस्मोपॉलिटन शहरों में विभिन्न राज्य के लोग काम करते हैं. वे एक दूसरे से मिलते हैं और उनके बीच शादियां भी तय होती हैं. सामाजिक-धार्मिक रस्में निभानी हैं, इसलिए सुविधा को देखते हुए चर्च में कुछ चीजें बदल रही हैं.
हाल ही में संपन्न कुछ विवाह में सिर्फ एक-दो दिन पूर्व ही वचनदत्त की रस्म अदायगी की गयी, जबकि इनके बीच औसतन एक महीने का समय रहता है. कलीसियाई नियम के अनुसार वचनदत्त के बाद के तीन रविवार चर्च में ‘पुकार’ होती है, जिसमें लोगों को अवसर दिया जाता है कि यदि उन्हें विवाह पर कोई आपत्ति है, तो उससे चर्च को अवगत करायें़ आपत्ति नहीं होने पर पहली पुकार के 90 दिनों में शादी करायी जाती है.
मान्य हैं विवाह : बिशप बास्के
सीएनआइ छोटानागपुर डायसिस के बिशप बीबी बास्के ने इन शादियों को मान्य बताया. कहा कि चर्च के विवाह संबंधी नियम भारतीय विवाह कानून के अनुरूप हैं. यदि उसका उल्लंघन नहीं होता, तो शादी वैध मानी जाती है.
वचनदत्त मसीही विवाह की पहली शर्त है. इसमें भावी वर-वधू चर्च में एक दूसरे को विवाह का वचन देते हैं. तीन पुकार व शादी के रस्म भी इससे जुड़े हैं. पर, यह सवाल भी है कि यदि पहले वचनदत्त नहीं हुआ, तो तीन पुकार किस आधार पर हुए? इधर, राहेल के पिता कमल लकड़ा ने कहा कि बदलती परिस्थतियों के कारण बदलाव आ रहे हैं़ सबके पास छुट्टियों की कमी होती है़ बार-बार आना भी समस्या है़ इसलिए कुछ कार्यक्रम एक साथ होने लगे हैं.