हर कार्यालय में ऐसे लोग बड़ी संख्या में मौजूद हैं, जो सुबह काम पर आने के एक-दो घंटे बाद से ही घर वापस जाने के वक्त का इंतजार करने लगते हैं. ऐसे लोग शरीर व दिमाग से तो बड़े हो जाते हैं, लेकिन बचपन के स्कूल के दिनों की आदत नहीं जाती.
जिस तरह बच्चे छुट्टी की घंटी बजते ही बैग ले कर बाहर की ओर भागते हैं, ठीक उसी तरह ये भी बिना पीछे देखे, सरपट दौड़ लगाते हैं. ये सोच कर कि कहीं कोई रोक कर नया काम न दे दे. यह एक तथ्य है कि 80 प्रतिशत घड़ियां लोगों को यह बताने के लिए प्रयोग में लायी जाती हैं कि काम कब छोड़ना है. कर्मचारियों में से ज्यादातर ‘कठिन परिश्रम के इच्छुक’ होने की अपेक्षा ‘काम छोड़ कर चलने के इच्छुक’ होते हैं.
एचएम ग्रीनबर्ग के एक लाख 80 हजार लोगों पर किये गये मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत लोग हर रोज अनिच्छापूर्वक काम पर जाते हैं. वे जो काम करते हैं, वह उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं है.
एक बूढ़े ज्ञानी राजा ने पते की बात कही है. ‘जब लोग यह सीख जायेंगे कि यदि उन्हें धूप में अपने लिये जगह बनानी है, तो उन्हें कुछ फफोलों के लिए तैयार रहना होगा, तो काफी हद तक काम पूरा हो जायेगा.’ काम वह कीमत है, जो हम सफलता के मार्ग पर चलने के लिए देते हैं. बहुत से लोग मानते हैं कि सफलता ग्रंथियों पर निर्भर करती है और वे ठीक भी कहते हैं अगर ग्रंथियों से तात्पर्य ‘पसीना लानेवाली ग्रंथियों’ से है.
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, आगे बढ़ना कितना भी आसान और सुविधाजनक क्यों न हो, कुछ लोग तो पिछड़ ही जायेंगे. इसी पैमाने के अनुसार आगे बढ़ना कितना भी मुश्किल क्यों न हो, कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो आगे निकल जायेंगे. पुरानी कहावत है, ‘जब आगे बढ़ना मुश्किल हो, तो परिस्थितियों का डट कर मुकाबला करने से काम बनता है’. अमेरिका की प्रमुख रबर कंपनियों में से एक ने कहा था कि काम में आनंद आना चाहिए. किसी महान व्यक्ति ने कहा था, सफल होने के लिए आज जो कर रहे हैं, इसकी आपको जानकारी होनी चाहिए, वह करना आपको पसंद होना चाहिए, उसे करने में आपको विश्वास होना चाहिए.
बात पते की
– अपने ऑफिस में काम से प्यार करनेवाले लोगों को पहचानें. उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए तरक्की दें, पुरस्कार दें. ऐसे लोग आसानी से नहीं मिलते.
– अगर आपको घर जाने की जल्दी रहती है, तो आप अपने काम से प्यार नहीं करते. बेहतर है कि जॉब बदल कर वह काम करें, जिससे आपको प्यार हो.
।। दक्षा वैदकर ।।