सिलीगुड़ी: दृष्टिहीन व्यक्ति भी वह सब कर सकता है, जो आम आदमी करते हैं. नासा में हजारों वैज्ञानिकों के बीच एक दृष्टिहीन वैज्ञानिक भी है. स्वयं मैंने बचपन में अपनी आंखें खोकर भी पीएचडी की डिग्री हासिल की और अब कॉलेज में पढ़ाती हूं.
हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने ठीक ही कहा है : ‘सपना वह नहीं, जो बिस्तर पर लेटे, आंखें मूंद कर देखा जाता है. सपने वे हैं, जो आपको सोने न दें. यह कहना है, नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड की सचिव कंचन गाबा का. उन्होंने रविवार माटीगाढ़ा स्थित नैब मातृछाया सेवा संस्थान में वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर, ऑडिटेरियम और ‘मातृ मंदिर’ का शिलान्यास किया.
मातृछाया के बच्चों ने ‘गुरू देव दया करके, मुझको अपना लेना..’ सामूहिक गीत से सभा को बता दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं. ईश्वर ने भले उन्हें दृष्टि नहीं दी, लेकिन उन्हें प्रतिभा से महरूम नहीं किया. वहीं कोलकाता के दृष्टिहीन स्कूल से आयी संपा ने अपने गणोश वंदना नृत्य से सबको अचंभित किया. बिना आंखों के भी उसकी आंखं ईश्वर को देख सकती हैं. उसकी अराधना कर सकती हैं. अध्यात्म की धुन में उसका मन, मयूर की भांति नाच सकता है.
मातृछाया की उपाध्यक्षा सुलोचना मानसी ने बताया कि व्यक्ति चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है. हमारा थोड़ा सहयोग यदि किसी का जीवन बदल दे, इससे बड़ी पूजा क्या होगा? इससे बड़ा धर्म कौन-सा है? इस विशेष अवसर पर संस्था के अध्यक्ष सुभाष चंद्र कुंभट, जगदीश प्रसाद रटेरिया, संपत मल संचेती, प्रमोद अग्रवाल, रवि मित्तल, अमन वैद, महावीर चचान सहित शहर के विभिन्न समाजसेवी व विशिष्ठ नागरिक उपस्थित थे. इसके लिए सभी ने नैब और मातृछाया की सराहना की.