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भारत-यूरोपीय संघ के बीच व्यापार पर वार्ता बेनतीजा

नयी दिल्ली: लंबे समय से भारत-यूरोपीय संघ के बीच चल रही मुक्त व्यापार समझौता बातचीत को धक्का लगा है. बीमा क्षेत्र और आईटी क्षेत्र के लिये डेटा सुरक्षा समेत विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों को दूर करने में मुख्य वार्ताकारों की आज हुई बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला. इससे अगले महीने प्रस्तावित मंत्री स्तरीय बैठक […]

नयी दिल्ली: लंबे समय से भारत-यूरोपीय संघ के बीच चल रही मुक्त व्यापार समझौता बातचीत को धक्का लगा है. बीमा क्षेत्र और आईटी क्षेत्र के लिये डेटा सुरक्षा समेत विभिन्न मुद्दों पर मतभेदों को दूर करने में मुख्य वार्ताकारों की आज हुई बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला. इससे अगले महीने प्रस्तावित मंत्री स्तरीय बैठक की संभावना कम हो गई.

दोनों पक्षों ने विभिन्न जटिल मुद्दों पर मतभेदों को दूर करने के लिये 13 मई से बातचीत शुरु की थी. प्रस्तावित व्यापार समझौते को लेकर अंतिम नतीजे पर पहुंचने के मकसद से दोनों पक्षों के मुख्य वार्ताकार इस बातचीत में 15 मई को जुड़े.

बहरहाल, करीब एक सप्ताह लंबी चली वार्ता का काई नतीजा नहीं निकला और काफी मतभेद बरकरार रहे. इसको देखते हुए सूत्रों ने संकेत दिया कि अगले महीने प्रस्तावित मंत्री स्तरीय बैठक की संभावना नहीं है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच बातचीत से कोई उपलब्धि हासिल नहीं हुई.

सूत्रों ने कहा कि पिछले दौर की वार्ता में यूरोपीय पक्ष की तरफ से समझौते को जल्दी तार्किक परिणति पर पहुंचाने को लेकर भावना दिखाई देती थी जबकि इस बार ऐसा नहीं था. दोनों पक्ष उम्मीद के विपरीत इस बैठक से कोई महत्वपूर्ण सफलता हासिल करने में विफल रहे. समझौते को अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचाने के लिहाज से इस बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा था.

सूत्रों का कहना है कि इस दौर की बातचीत के विफल होने के बाद भारत में मौजूदा सरकार के समय समझौते पर हस्ताक्षर होने की संभावना सीमित है. जहां भारतीय पक्ष का नेतृत्व वाणिज्य मंत्रलय में अतिरिक्त सचिव राजीव खेर ने किया वहीं यूरोपीय संघ की तरफ से इगानसियो गर्सिया बेरसरो मुख्य वार्ताकार थे.

भारत और 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ के बीच व्यापक व्यापार और निवेश समझौते पर बातचीत जून 2007 में शुरु हुई लेकिन विभिन्न बाधाओं के कारण यह अटकती रही. विभिन्न मुद्दों पर दोनों पक्षों के बीच गहरे मतभेद हैं.

बातचीत के पहले ही दिन यूरोपीय संघ की तरफ से इस बात को स्पष्ट रुप से कहा गया कि भारत में बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सीमा को 49 प्रतिशत तक बढ़ाना बातचीत को मुकाम तक पहुंचाने के लिये आवश्यक है. भारतीय पक्ष ने संसद की मंजूरी के बिना ऐसा करने में असमर्थता जताई.

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