देवघर: संतालपरगना में नन बैंकिंग का घना जाल फैला है. इस जाल में यहां के गरीब जनता की गाढ़ी कमाई फंसी है. पूरे संतालपरगना की बात करें तो यहां तकरीबन 140 नन बैंकिंग कंपनियों के कार्यालयों में छापेमारी हुई. 111 कार्यालयों को सील किया गया. इनमें से 58 कंपनियां देवघर की है. इन कंपनियों के पास संतालपरगना का तकरीबन नौ सौ करोड़ जमा है. सिर्फ देवघर में इन कंपनियों ने लगभग 100 करोड़ का कारोबार किया है. इतने गंभीर मामले को देवघर डीसी तरजीह नहीं दे रहे हैं, जिसमें हजारों जनता का पैसा डूब रहा है.
ऐसी नन बैंकिंग कंपनियों पर कार्रवाई के प्रति देवघर डीसी उदासीन हैं. जबकि राजमहल, बरहड़वा, गोड्डा, महगामा, जामताड़ा जिले में कुल 64 नन बैंकिंग कंपनियों पर एफआइआर हो चुका है.देवघर में 27 कार्यालय सील हुए. तत्कालीन एसडीओ उमाशंकर सिंह ने 11 फरवरी 2013 को ही दस्तावेजों के साथ पूरी रिपोर्ट डीसी से लेकर सरकार स्तर तक भेज दिया था. श्री सिंह वर्तमान में कोडरमा डीसी हैं. वहीं मधुपुर एसडीओ दिनेश प्रसाद सिंह ने एक माह पूर्व ही 31 नन बैंकिंग कंपनियों के खिलाफ जांच रिपोर्ट डीसी को भेजा है.
दोनों ही एसडीओ ने डीसी से एफआइआर की अनुमति मांगी. वर्तमान देवघर एसडीओ जय ज्योति सामंता ने भी 20 अप्रैल 2013 को पुन: इन कंपनियों पर एफआइआर के लिए डीसी से अनुशंसा की लेकिन अभी तक डीसी के स्तर से कोई कार्रवाई नहीं हुई है. कार्यालय सील हुए लगभग तीन माह होने को हैं. नन बैंकिंग की फाइल डीसी कार्यालय में धूल फांक रही है. यही नहीं यह फाइल सरकार के यहां भी पेंडिंग है. अब सवाल उठता है कि देवघर और मधुपुर एसडीओ ने अलग – अलग कार्रवाई की अनुशंसा तो की पर देवघर डीसी का कहना है कि एसडीओ की रिपोर्ट उन्हें नहीं मिली है. तो एसडीओ की वह रिपोर्ट गयी कहां?
वर्तमान एसडीओ ने भी क्या की अनुशंसा त्नदेवघर एसडीओ जय ज्योति सामंता ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों व अन्य कंपनियों द्वारा अवैध रूप से आम जनता से लोक जमा लेना तथा आरबीआइ, सेबी, कंपनी एक्ट के उल्लंघन व आर्थिक अपराध के दोषी नन बैंकिंग कंपनियों के प्रबंध निदेशक, प्रमोटर,बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर के खिलाफ नियमानुकुल अधिनियमों के तहत प्राथमिकी दर्ज किये जाने की अनुसंशा की है.
एसडीओ ने द आरबीआइ एक्ट 193(एक्ट नंबर-2 ऑफ 193) की धारा 58बी, सेबी एक्ट 1992(एक्ट नंबर-15 ऑफ 1992) की धारा 15(ए), 15(बी), 15(सी),15(डी),15(इ),15(एफ),15(जी),15(एच),15(एचए),15(एचबी), द कंपनी एक्ट 1956 की धारा 59, द प्रीवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट1988 की धारा 8 व 10, प्रीवेंशन ऑफ मनी लाउंड्रींग एक्ट 2002 की धारा चार, के उल्लंघन व ऑर्थिक अपराध के दोषी हैं. अपितु आम लोगों से उनके बचत को झूठे प्रलोभनों व षडयंत्र कर तथा गलत दस्तावेज प्रस्तुत कर अवैध वसूली करने के कारण द प्राइज चिट्स एंड मनी सकरुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट 1978(एक्ट नं-43 ऑफ 1978) की धारा चार व आइपीसी की धाराओं 120,420,426 व 465 के
भी दोषी हैं.