मुंबई : वोडाफोन इंडिया को सेवा में लापरवाही का दोषी करार देते हुए महाराष्ट्र राज्य उपभोक्ता वाद निवारण फोरम ने निचली अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें सेवा प्रदाता से कहा गया था कि वह अकारण आने वाली व्यावसायिक कॉल्स को रोक पाने में विफलता के लिए एक डॉक्टर को 20 हजार रुपये का मुआवजा तथा खर्च की राशि के रुप में पांच हजार रुपये प्रदान करे.
फोरम के सदस्यों एस आर खानजोड और धनराज खामटकर ने कल अपने आदेश में कहा कि वोडाफोन अपना दायित्व निभाने में विफल रही और इसने सही ढंग से काम नहीं किया.
इसने उपभोक्ता अदालत के फैसले के खिलाफ वोडाफोन की अपील को खारिज करते हुए कहा कि कंपनी के खिलाफ सेवा में लापरवाही का मामला अच्छी तरह साबित हो गया है.
उपनगरीय इलाके मुलुंड में प्रैक्टिस करने वाले डॉ. आशीष गाला ने वोडाफोन की डोंट कॉल लिस्ट में पंजीकरण कराया था. लेकिन फिर भी उन्हें विभिन्न कंपनियों के फोन आते रहे. इस पर उन्होंने 30 अगस्त 2008 को सेवा प्रदाता के समक्ष शिकायत दर्ज कराई और कहा कि वोडाफोन को सुनिश्चित करना चाहिए था कि उन्हें कॉल नहीं आएं.
वोडाफोन ने तर्क दिया कि दूरसंचार एवं अध्येषित व्यावसायकि संचार नियमन 2007 के तहत यह सेवा में कमी का मामला नहीं है. व्यावसायिक कॉल्स को रोकना उनका वास्तविक दायित्व नहीं है.
बाद में मामला उपभोक्ता अदालत पहुंचा. राज्य उपभोक्ता फोरम ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए वोडाफोन को आदेश दिया कि वह डॉ. गाला को जिला फोरम के आदेशानुसार 20 हजार रुपये का मुआवजा और पांच हजार रुपये खर्च की राशि के रुप में प्रदान करे.
इसके अतिरिक्त, अपील के संदर्भ में फोरम ने सेवा प्रदाता को खुद का खर्च वहन करने और डॉक्टर को खर्च के रुप में 10 हजार रुपये की राशि प्रदान करने का भी निर्देश दिया.
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